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Showing posts from November 21, 2021

हो सकता है

 हो सकता इन बुनियादों पर  महल नहीं बन पाएं मेरे  झूठ नहीं मैं चिन सकता हूँ  झूठ नहीं मैं बुन सकता हूँ  हो सकता इस सफर सुहाने  साथ नहीं चल पाए मेरे  झूठ नहीं मैं बो सकता हूँ  झूठ नहीं मैं कह सकता हूँ  हो सकता इन सपनों की  तावीर नहीं बन पाए मेरे  झूठ नहीं मैं लिख पाया हूँ  झूठ नहीं  मैं गा पाया हूँ  खोना पाना तय ही है सब  सफर नहीं ये अधूरे मेरे  झूठ नहीं है मनन तुम्हारे  झूठ नहीं प्रयत्न हमारे  आ जा कुछ दिन सफर जिंदगी  साथ साथ जी कुछ यादें  झूठ नहीं है साथ तुम्हारा  झूठ नहीं समर्पण हमारे  हो सकता इन बुनियादों पर  महल नहीं बन पाएं मेरे  झूठ नहीं मैं चिन सकता हूँ  झूठ नहीं मैं बुन सकता हूँ 

मन से तेरे लिए

 तस्वीरों का शौक नहीं  स्मृतियाँ सहेज कर रखता हूँ  आलिंगन दो चार हुए हों  खुशबू ओढ़े रहता हूँ  रिश्तो के बंधन नहीं है  मन मंदिर में रखता हूँ  मिलने की जब आस कम ही हो  दिन दिन जीता रहता हूँ  शर्तों की दिवार नहीं है  सीमाओं में रहता हूँ  जिस पर यूँ तो बस नहीं चलता  उस पर मिटता रहता हूँ  जिसकी कोई मांग नहीं है  उसको सोचा करता हूँ  अखिल किया है सबका लेकिन  मन से उसको करता हूँ  कल जो होना है हो जाये आज वो मेरे साथ है  पाना खोना जीवन ही है  गरल प्रेम पी अनश्वर हूँ  

अस्पष्ट रहे

 कभी चला हूँ राह अनचली कभी राह बनायीं है  वो कहते अस्पष्ट रहे हम  जिनकी धुन में जागे हैं   कभी विचारों शून्य हुआ हूँ  कभी बात बतलायी है  वो कहते अस्थिर से रहे हम  जिनकी राहें खामोश चले  कभी बना पाषाण रहा हूँ  कभी प्रस्फुटित कोपल हैं  वो कहते अपाठ्य रहे हम  जिनको बरसों लिखते रहे  कभी लगा है सब पाया है  कभी वजूद मिटाता जीवन है  वो कहते बस गूढ़ रहे हम  जिनको सदियों गाया है  सच का एक रिश्ता है जिनसे  आत्ममनन की यादें हैं वो कहते यूँ साथ में हैं हम  बस तुम हमसे थोड़ा दूर रहो  दूर कहाँ अब जाया जाता  या सांसे विराम लगे  वो कहते सम्भाषण हैं ये  मैं कहता जीवन सार प्रिये !!