Posts

Showing posts from August 15, 2021

साँस थामे

 सूख कर बंजर हुए जो  खेत लहराते मिले  शाम की दहलीज़ पर  कुछ गुनगुनाते गीत थे  हम वहाँ हर आस को मन में दबाये  बीज मेहँदी खिल रही है साँस थामे  मंदिरो की घंटियों से  आशीष स्वर आते लगे  वो नदी जो खो गयी थी  लौटकर बहती लगी  नफरतों के शूल थे जिन क्यारियों में  कोपल अनोखी बढ़ रही है साँस थामे  जो गली सुनसान थी  वो अब चहकते खग वहाँ रौनकें जो थम गयी थी  लौटकर आती लगी  लू थपेड़े जल रही जिन दुपहरों में  पनाग केशर बढ़ रहा है साँस थामे 

उम्मीद बाँधा हूँ

 जहाँ परवाह नहीं कुछ भी  वहीं उम्मीद बाँधा हूँ  मैं बचपन लौट आया हूँ  वो पत्थर मन छुपा आया  कभी झरने नहाया हूँ  कभी नहरों में बह आया  मैं बचपन की शरारत सब  उसी से जोड़  आया हूँ  कभी रातों को रोया हूँ  कभी चुपचाप खोया हूँ  मैं बचपन की सभी तस्वीर  उसी से जोड़ आया हूँ  कभी पहाड़ों चढ़ा ऊंचे कभी गिरकरके लुढ़का हूँ  मैं बचपन की सभी कोशिश  उसी से जोड़ आया हूँ  समुन्दर एक चाहत है  नदियों सा घुला उसमे मैं बचपन की सभी मंजिल   उसी से जोड़ आया हूँ  छोटी सी रही पहचान  रंगमंचों की कदर किसको  मैं बचपन के सभी प्रभुत्व  उसी से जोड़ आया हूँ  तेरा हक़ है सदां तेरी  आधारों की शिला तुझसे  मैं बचपन के सभी सपने  तुझी से जोड़ आया हूँ   जहाँ परवाह नहीं कुछ भी  वहीं उम्मीद बाँधा हूँ 

तुझे खो लूँ !

 कुछ पाकर तुझे खो लूँ ! नहीं सौदा नहीं होता  कहाँ अरमान बेचे हैं मनों का भाव नहीं होता  बहुत थोड़ा बचा गौरव वही जीना सिखाता है  मुझे कमतर ही पाना है  अमुल्यों को नहीं खोना  कुछ लेकर तुझे खो लूँ ! यही पाना नहीं होता  कहाँ ऊपर को उठना है  जड़ों की राह हो गहरी  जो थोड़ी सी बची पहचान  वही हसना सिखाती है  मुझे नीवों में जमना है  उचाईयों पर नहीं रोना  कुछ बनकर तुझे खो लूँ ! यही मिटना नहीं आता  कहाँ दूरी बढ़ाना है  सफर में साथ रहना है  जो थोड़ी है मुलाकातें वही पाना सिखाती है  मैं  खोने से डरता हूँ   पाने पर न इतराना  बहुत थोड़ा बचा जीवन  मुझे  शर्तों पे जीना है  कोरे ही सही आदर्श  मुझे नजरों में उठना है 

तब तक

 चिंता उसको रहती है  और हाल हमारा वो जाने  जाने कब तक साथ चलें  कब सरहद पर दिवार लगे  हम राहों पर बढ़ आये हैं  अब शामों  की परवाह नहीं  जाने कब वो पूरा होगा  कब सपनो पर अवरोध लगे  हम साथ बाँटते चल आये हैं  अब दर्दो की पहचान नहीं  जाने कब वो एक मन होगा  कब देह दृष्टि से नज़र हटे एक डर के साये जीते हैं  एक डर के आगे जीते हैं  जाने फिर कब चल देगा तू  कब राख़ करेगा जीवन तू  एक मन में विश्वास लिए हैं  एक त्यागों की परिपाटी है  जाने कब आलिंगन होगा  कब साँस रखेगा सांसे तू  अपनाता सम्पूर्ण लगा है  और पीर हमारी वो जाने  जाने कब आशीष मिले  कब बाँह रखेगा बाँहें तू  यूँ जीकर अमरत्व पा गया  मोक्ष मनों का तुझ तक है  तब तक जीना संग तुम्हारे  जब सांसो पर विराम लगे  

मोक्ष

 जो कण कण में बसा रहा  केदारभूमि सा बहा कभी  आध्यात्म लिए इस मन में था   और विद्यमान हर ओर रहा  जो साँस साँस ठहरा रहा  सरयू सा रोया कभी  हर त्याग लिए इस मन में था  और प्रीत जगाता और रहा  जो धूं धूं कर जलता रहा  मणिकर्णिका सा सोया नहीं  मोक्ष लिए इस मन में था  और पास बुलाता और रहा  जो दूर दूर सहमा रहा  कस्तूरी सा मिला नहीं  सौरभ सावन इस मन था  और राह घूमता रहा सदा  वो केदारभूमि भी मेरी थी  वो पावन जल सरयू मेरा था  वो खोई मणिकर्णिका मेरी थी  अब  इत्र कस्तूरी ओढ़ा है  तू चिंतन लिए आध्यात्म रहा  तू त्यागों की परिभाषा थी  तू मोक्ष रहेगा इस मन का  तू शिव सा सावन मेरा है 

आधे की उम्मीद

 कुछ खुली है बंद किताबें  आशाओं के द्वार खुले  हर पन्ने पर साथ दिखा  और कहती सी तस्वीर लगी  सूखे फूल खिले कुछ ऐसे  अँधेरे जग में आस जगी  स्नेह रहा सब और वहाँ है  और अपनों सी एक पीड़ रही  कुछ बातों का दौर चला है  सच आया है आज निखरकर  हर शब्दों का इतिहास रहा  और अपनी सी ताबीर लगी  लम्बा रास्ता तय करना है  मंजिल की कोई ठौर नहीं  हर कदम तू  साथ लगा है  और आगे की एक दौड़ लगी  मन का अब विश्वास बढ़ा है  दिशाहीन परप्रीत नहीं  आधा तुमको  पाया है  और आधे की उम्मीद रही 

तू कर्म भाग्य हो

इस राह की मंजिल तिरोहित  फिर भी कदम बढ़ाना मुझे  हो कहीं ओझल निगाहें  यूँ सदा चलना  मुझे  इस सपने की सुबह ओझल  फिर भी ख़्वाब देखना मुझे  हों कहीं रातें अमावस   यूँ सदा जागना मुझे  इस रिश्ते की पहचान गायब  फिर भी सदा निभाना मुझे  हों कहीं गुमनाम नाते  यूँ सदा रखना मुझे  उम्मीदों पर चला राहें  बढ़ा हूँ एक आशा पर  हों कहीं जो लिखा नहीं  तू कर्म भाग्य हो मुझसे  कहाँ कुछ आस थी तब भी  समंदर एक लांघा है  हों कहीं सुनसान वादे तू फिर बुलाना मुझे