तब तक

 चिंता उसको रहती है 

और हाल हमारा वो जाने 

जाने कब तक साथ चलें 

कब सरहद पर दिवार लगे 


हम राहों पर बढ़ आये हैं 

अब शामों  की परवाह नहीं 

जाने कब वो पूरा होगा 

कब सपनो पर अवरोध लगे 


हम साथ बाँटते चल आये हैं 

अब दर्दो की पहचान नहीं 

जाने कब वो एक मन होगा 

कब देह दृष्टि से नज़र हटे


एक डर के साये जीते हैं 

एक डर के आगे जीते हैं 

जाने फिर कब चल देगा तू 

कब राख़ करेगा जीवन तू 


एक मन में विश्वास लिए हैं 

एक त्यागों की परिपाटी है 

जाने कब आलिंगन होगा 

कब साँस रखेगा सांसे तू 


अपनाता सम्पूर्ण लगा है 

और पीर हमारी वो जाने 

जाने कब आशीष मिले 

कब बाँह रखेगा बाँहें तू 


यूँ जीकर अमरत्व पा गया 

मोक्ष मनों का तुझ तक है 

तब तक जीना संग तुम्हारे 

जब सांसो पर विराम लगे  

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