Posts

Showing posts from April 7, 2019

नहीं आता

तेरी तरह मन की बातों को  मन मे रखना नहीं आता  लिखी बातों को मिटाना नहीं आता मन मे तेरा सम्मान रहा है हमेशा तेरी तरह ठिठक कर नज़र फेरना नहीं आता तेरी तरह शब्दों को चयनित कर  तोल मोल कर लिखना नहीं आता  गुमशुम मन के बंबडर को छुपाना नहीं आता नज़रों ने तलाश किया जिसे उन अपनो सा है तु तेरी तरह हर बात सोच समझकर कहना नहीं आता होती हैं सीमाऐं सबकी पर बँधना नहीं आया स्वच्छन्द उड़ा हूँ हर सरहद के पार   आवाज़ शायद कभी गयी नहीं है उस पार फिर भी बेबाक़ी से लिखता हूँ रिश्ता अपना तेरी तरह भावनाओं का नापतोल करना नहीं आता

ख़ामोशी

ये शहर क्यूँ खामोश लगता है  कौन अपना है जो दूर चला जाता है शाम की गोधूली मे छुपता है  आस का गीत छूटता है  कोई यूँ न रिश्ते सभी तमाम होते हैं याद की लौं को जलाता है कोई चाँद छुपता रहा है बादल मे अब इस अमावस को स्याह करता है कोई इस फ़लसफ़े  मे कुछ पल गुज़ारे है याद की सौग़ात उजाड़ता है कोई  रिश्ता ये रहा है बस सम्मानों का आज मन को चुभा के जाता है कोई मुकम्मल रहैं वो नज़ाकत तेरी  आज अपना सा दूर जाता है कोई  बेनिशां थे वो रंग रुठ जाने के  आज मन को रगां गया  है कोई...... 

कहानी

मिट्टी से लगाव था वतन छूट गया पहाड़ों से प्यार था पहाड छूट गया  मां की लोरी से जो बच्चा सोता था कभी  दुनिया के थेपेडों ने यूँ  धोया  कि वक़्त बदला तो एहसास रोया  ये कहानी अनवरत चली  तेरे आने से फिर शुरु हुई और तेरे जाने तक फिर ताकती रही .....

हार

लहरों को हर बार देखा अपने से भागते हुए वो जब कभी पास आयीं दूर जाती ही लगी रेत पर घरोंदे बनाना आदत ही रही जानता था ये बिखेरकर जाएँगी ... झुक के चला था जीवन के पहाड़ पर आशाओं की कोपल सहेजी थी हरदम इरादों मै खोट होती तो यूँ वेदना न होती वो हर बार टीस दे गयी काटों की चुभन की तरह जग जीतने कौन निकला था यहाँ कौन था घरो मै दिवाल खड़ी करता यहाँ जीतना अगर मकसद होता तो पा भी लेता मै हारने आया था और हार के जा रहा हूँ 

घात

पाले की परतो को देखा झील को ढकते  खोते हुऐ देखा है प्रतिछाया को  पतझड़ मै याद आया कि साथ अपने भी छोड़ते है  यकीं तो न था पर तेरे आने के बाद लगा कि घात अपने ही देते है  धरती को चीरते हुए  उम्मीदों के बीज बोये थे हमने  बुग्यालों कि खाख छानते हुए देखा है मृग को  कौन अपना होता है जहाँ मै ढूँढ़ते  रहे  तुझसे मिलकर पाया कि  मन के करीब का ही कोई  मन पर चोट करता है 

अक्सर

जो वक़्त बदला है ना ! ये तेरे आघातों की चोट है कठोर पाथरों पे फिसलन बड़ी है शैवाल लग जाने के बाद रोपा था बेलों को ठूठों के सहारे बढ़ने को काटो को पैना होता देखा है अक्सर सुख जाने के बाद दीया अक्सर बलबलाता है सफर के आखिरी मुकाम पर भारी पत्थर को सबसे नीचे लुढ़कते देखा टूट जाने के बाद भावनाये अक्सर हार जाती हैं जब कोई तीसरा सरमोर हो हर उफनती नदी को शांत बहते देखा संघर्षो की जमी पर आने के बाद 

आघात

खोखला कर जाता है  विश्वास जो एकतरफ़ा हो समग्र त्याग की भावना  नज़रों मे अपनापन चाहती ही है हकिकतो की दिवारों पर  कोई गोपनीय सन्देश नहीं होता पढ़ न सके जो ख़ाली मन को ऐसा सम्मानों का अपनापन नहीं होता रास्ते सबके अलग होते है  भावनाओ की कोई मंज़िल नहीं होती चला हो मन जिनके साथ कुछ दूर ऐसे मन के रिश्ते की कोई सीमा नहीं होती  कौन साथ चला है मंज़िल पर आते आते जीवन की प्रतियोगिता मे दौड़ समान नहीं होती  सब कुछ हार जाने का मन होता है  जहाँ  ऐसे मन पर किसी के घात की आघात नहीं होती

ख़त्म है

वो ठूँठ जो अकड़े रहते हैं चटक ही जाते है  वैसे ही झूठी बुनियादों के  रिश्ते ढह ही जाते हैं  अभिमान अभिशाप बन जाता गर झूठ का गुरुर हो कोमल आशाओं पर ओलावृठी विश्वास टूट ही जाता है वो गुमसुम तुझे सोचने का दौर ख़त्म होना था हो गया ये अपने से अजनबी के सफ़र  ख़त्म हो ही जाते हैं 

भूल गया था

एक नाकाम कोशिश ही रही  पथरायी विश्वासों की ज़मीनों पर  आस  स्नेह के बीज बोना तु तो अमरत्व लिये था  भूल गया तु तो अश्वत्थामा था कुपाचारी घृणा फैलाने वाले तेरे लोग ग़लतफ़हमी की फ़सल पिरोते गये तेरी उपहास वाली चुनौती थी  सत्य के अर्जुन को भूल थी कि तु मानवीयता लिये हुऐ था चल अब विश्वासों के आघातों का रण होगा एक तरफ़ तुम्हारे गुरुर और मेरे स्नेह का अजमाले अब जितना बचा है  ये लड़ाई बुराई के घमण्ड को तोड़ने की है भूल थी कि तुझमें अपना कोई देखा था