अक्सर


जो वक़्त बदला है ना !
ये तेरे आघातों की चोट है
कठोर पाथरों पे फिसलन बड़ी है
शैवाल लग जाने के बाद

रोपा था बेलों को
ठूठों के सहारे बढ़ने को
काटो को पैना होता देखा है
अक्सर सुख जाने के बाद

दीया अक्सर बलबलाता है
सफर के आखिरी मुकाम पर
भारी पत्थर को सबसे नीचे लुढ़कते देखा
टूट जाने के बाद

भावनाये अक्सर हार जाती हैं
जब कोई तीसरा सरमोर हो
हर उफनती नदी को शांत बहते देखा
संघर्षो की जमी पर आने के बाद 

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