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Showing posts from November 3, 2019

रहे न रहे

कसौटी पर खरा उतरूं न उतरूं कोशिशों का दौर जारी है मन होता नहीं की थक जाऊँ उम्मीद इसकी भी है उसकी भी कहीं पहुँच सकूँ या न सकूँ कदमों का चलना जारी है मन होता नहीं कि रुक जाऊँ मंजिल इसकी भी है उसकी भी मनाना रूठना रहे न रहे किसी कोने में कुछ तो है मन होता नहीं कि भूल जाऊँ आस मेरी भी है उसकी भी

वो किरण

वक़्त तो मिजाजी था कब किसका हुआ  कल तेरे साथ था  अब पराया हो गया  बदलता पन्ना कब रहा कहानी के कथानक में पहले चित्र उभरता था अब परछाईं रह गया  यादें कब किसकी हुई जीवन की दौड़भाग में  पहले हरदम मुँह में था  अब मन में अकेला रह गया  तु भी मेरे पहाड़ों सा है मन मे है पर दूर ही रहा हिमालय की वो  किरण जहाँ रोशन तो कर गयी 

दो छौर

वो दीवार पर चिपका रहा  कि पत्थर ही बन गया हो  अमूर्त सीने की वो धड़कन  साँसों की गहराई नापती है  वो नज़र झुकाये ही रहा  कि मूर्ति सा बन गया हो  काँपते अधरों की बैचेनी  सदियों के इन्तज़ार सी है  वो दूरियों मे ही सदैव रहा  आँखों या अपनेपन की हों निहारती पलकों की थकन उस नदी के दो छौरों सी है