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Showing posts from June 5, 2022

मन के पार

पहले मन के पार गयी फिर सपने सजा गयी मेरी बनकर मुझसे लिपटी नजर मिलाकर चली गयी घर की देहरी सजी मिली आंगन छज्जा धुला मिला कोने बैठें बाटी खुशियां  हाथ मिलाकर चली गयी चेहरे बोल रहे अपनापन मन की धड़कन तेज रही घबराई थी सांसे लेकिन गले मिलाकर चली गयी सुर्ख हुए होठों की भाषा छूकर स्नेह उड़ेल गयी देकर अपना मनतन सब मुझे जीतकर चली गयी

निशां

गहराती एक इबारत को एक नया अंजाम दे आया मैं मन को छोड़ आया हूँ और खुशबू संग लाया हूँ अधूरी सांस रख दी थी उत्ताप धड़कते सीने पर समेटी पखुड़ियां कोमल  और निशान संग लाया हूँ घरों को एक कर बैठै कोने अहसास रख आया लगाया है गले उसको और यादें सग लाया हूँ