मन के पार

पहले मन के पार गयी
फिर सपने सजा गयी
मेरी बनकर मुझसे लिपटी
नजर मिलाकर चली गयी

घर की देहरी सजी मिली
आंगन छज्जा धुला मिला
कोने बैठें बाटी खुशियां 
हाथ मिलाकर चली गयी

चेहरे बोल रहे अपनापन
मन की धड़कन तेज रही
घबराई थी सांसे लेकिन
गले मिलाकर चली गयी

सुर्ख हुए होठों की भाषा
छूकर स्नेह उड़ेल गयी
देकर अपना मनतन सब
मुझे जीतकर चली गयी

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