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Showing posts from July 26, 2020

ठहरे हुए गुबार

वो चेहरे की हंसी पढ़ना मुश्किल है  वो साज-औ - श्रृंगार कुछ कहता है  पढ़ता हूँ बरस बाद लौटे वो शब्द  तुझे मानना न मानना अब बेबस है  वो ख़ामोशी  लिखना मुश्किल है  उन आंसुओ को भूलना मुश्किल है  सोचता हूँ ठहरे हुए  गुबार में   आंधियां आना न आना अब बेखौफ है  स्नेह की स्मृतियों को भूलना मुश्किल है  एकतरफा रिश्तों को तोडना मुश्किल है  मानता हूँ एकांत के कुछ क्षणों में  रिश्तो की डोर पर बस न तेरा है न मेरा है