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Showing posts from May 2, 2021

जो थोड़ा है

 आस जगी है मन में कोई नेपथ्य कहीं रोशन सा हुआ वीरान हुए जो मंच कभी थे एक तेरे चले जाने से  क्या खोया क्या पाया हमने निष्कर्ष नहीं इस रिश्ते का  जो थोड़ा सा पास बचा है  सार वही इस जीवन का।।  ढूंढ रही थीं आंखें राहें छटती अर्चि गोधूलि है  रात रही जो बरसो घेरे चाँद तेरे चले जाने से कह डाला क्या भूला हमने निष्कर्ष नहीं इन बातों का  आज जो थोड़ा कह देते है सार वही इस जीवन का।।  शंकाये कुछ जिन्दा हैं पर भ्रम के घेरे टूटे हैं  खुद लिखते थे खुद पढते थे दर्द तुम्हारे जाने से  आँख चुराता क्यों रूठा था निष्कर्ष नहीं उन शामों का  आज वो थोड़ा सुन लेते हैं सार वही इस जीवन का।

समय की रेत

  मैं समय की रेत पर चलता रहा उड़ता रहा वो  समुन्दर था मेरा, आगोश में लेता रहा  कह न पाए शब्द बरसों अब रुका जाता कहाँ  एक  रुंधी आवाज थी अब गीत देता तु लगा।।  मैं गाछ के हर पात सा झड़ता रहा जलता रहा  वो शिवालय था मेरा मैं  राख सा मलता रहा  यूं तो हम औगण सदा से अब सजा जाता नहीं  एक बुझी  सी लौ रही अब आग देता तु लगा।।  मैं नदी के वेग सा अक्सर यूँ टकराता रहा  जलबंध था मेरा मैं उसमे ही समाता यूँ रहा  यूँ तो हम वीरान थे उजड़ी थी ये नगरी सदा  एक शोध था बरबस हमारा ज्ञान तु देता रहा।।  

फूल खिल आये

  साजिशें जो संदेह की दीवार पैदा कर गयीं ये जमीं स्नेह की थी फूल खिल आये वहीँ   लाख कोशिश की गयीं जो दूरियां बढ़ती रहें  मन सदा से पास था नादाँ कुछ समझे नहीं  डर सवालों का रहा जब शोर तिनके भर का था  मौन ने पढ़ ही लिया तब मौन जो बातें कहीं  दूरियां जो गढ़ रहे थे आज कोसों दूर हैं जो रहे अंबरांत में वो  पास मन के हैं यहीं  डर रहा तेरी शान का इल्जाम हम लेते रहे  शब्द थे साहस भी था पर हम न लड़ पाए कहीं  मैं जमाना जीतकर तुझे हार सकता था  नहीं  खुद को हारा मान कर मैं रुक गया था फिर वहीं  साजिशें जो संदेह की दीवार पैदा कर गयीं ये जमीं स्नेह की थी फूल खिल आये वहीँ

कभी तु आ

  मैंने तोड़े हैं जगत के लाख बंधन थे कहीं   छेड़ देता  हूँ कभी कोई बात नादानी भरी  साथ में रहता है तु ही यूँ सदा ख़ामोश ही अब भी दिखती हैं तेरे शब्दों में सीमाएं बची  यूँ तो हम दो छोर हैं जो राह तकते हैं सदा  जनता हूँ मिल न पाए पर रहे मन में सदा  आ कभी तु तोड़ कर अब जो बची सीमा तेरी  भूल कर आ वो सभी जो हैं बची शंका तेरी  छुपते छुपते तेरे लोगों से कि या बतलाके आ  सब फ़साने छोड़कर मन गीत कोई गा के आ  देखना हर जोर हारा है समय के सामने  तेरा अपना है कोई बस एक निश्चय करके आ 

एक दिन

  तेरे चुप रहने का और मेरी बकवासों का  होगा जरूर होगा एक दिन हिसाब होगा  लिख न सका जो कुछ भी तू  कहना तुझसे दूभर था  मुड़ ही गया था तु तो  फिर कदम बढ़ाना मुश्किल था  तेरे चुप रहने का और मेरी बकवासों का  होगा जरूर होगा एक दिन हिसाब होगा  मान गया था जो तु  सच बतलाना मुश्किल था  तृष्कार किया था तुमने  नज़र मिलाना मुश्किल था  तेरे चुप रहने का और मेरी बकवासों का  होगा जरूर होगा एक दिन हिसाब होगा  निष्कर्ष था तेरा अपना  समझाना तब मुश्किल था  चला  ही गया था तु तो वापस बुलाना मुश्किल था  तेरे चुप रहने का और मेरी बकवासों का  होगा जरूर होगा एक दिन हिसाब होगा 

तु ही था हर बात में

  तु ही था हर बात में और ख्वाब में भी तु ही है  शब्द भी लिखे थे वो तुझको बंदगी भी तुझसे है  भेदना पहरों को तब भी यूँ कोई मुश्किल न था  आखोर की हर कर्मण्यता का विराम भी तो तुझसे था।  तु ही था बदली छबि में  हर सूक्ष्मता में तु ही था  भीड़ में ढूंढा था तुझको हर नजर भी तुझसे है   अनुहार की अवलोकना का अँदाना किस बस में था आबरू की हर सीमांतता का भेद भी तो तुझसे था।।  तु ही था मन में हमेशा हर सार में भी तु ही था  आंसू बहे जो आज हैं वो विश्वास भी तो तुझसे है  वैदेह की हर वेदना का तोरण कहाँ किस बस में था  कगार की एकरुखता का हर सबब  भी तुझसे था.।।