फूल खिल आये

 

साजिशें जो संदेह की दीवार पैदा कर गयीं

ये जमीं स्नेह की थी फूल खिल आये वहीँ  


लाख कोशिश की गयीं जो दूरियां बढ़ती रहें 

मन सदा से पास था नादाँ कुछ समझे नहीं 


डर सवालों का रहा जब शोर तिनके भर का था 

मौन ने पढ़ ही लिया तब मौन जो बातें कहीं 


दूरियां जो गढ़ रहे थे आज कोसों दूर हैं

जो रहे अंबरांत में वो  पास मन के हैं यहीं 


डर रहा तेरी शान का इल्जाम हम लेते रहे 

शब्द थे साहस भी था पर हम न लड़ पाए कहीं 


मैं जमाना जीतकर तुझे हार सकता था  नहीं 

खुद को हारा मान कर मैं रुक गया था फिर वहीं 


साजिशें जो संदेह की दीवार पैदा कर गयीं

ये जमीं स्नेह की थी फूल खिल आये वहीँ

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