Posts

Showing posts from May 9, 2021

समर्पण

 जो घुट घुट मैंने जिया है कह दूंगा सारी बात तुम्हें   वो जो भी गीत लिखे मैंने अब मीत मिलन की बेला है  हर अक्षर अक्षर बोलेंगे मन आवाज समर्पण कर लेना  तु बोल भी देना अब साथी  पल भर को मुझे सुला देना  जो पल पल मैंने सोचा है कह दूंगा सारी बात तुम्हें  वो जो भी गुमशुम सोचा था अब कहने की बेला है  हम तुम दोनों ही होंगे जब तोड़ वो सीमा सब लेना  तु कदम बढ़ाना अब साथी पल भर को गले लगा लेना  जो चुप चुप मैंने देखा है कह दूंगा सारी बात तुम्हें  एकटक जिसको देखा था अब दिखने की बेला है  नज़रों के अवरोध न होंगे आंसू थोड़ा छलका जाना  तु एक समुन्दर मेरा है आगोश में पीर को  ले लेना।। 

मिलन हुआ है

  आज गले मिल रो देंगी जब  संगम पर पहुँची हैं नदियां  अनवरत बहे जो युगों युगों तक  मन से मन का मिलन हुआ है  बूँद बूँद तरसता था बादल इस पपीहे की प्यास बुझी है उमड़ घुमड़ का बरस गए जो  बीज ख़ुशी के खिल आये हैं  क्षण भर में सब टूट गया जो  भंवर रहा उलझी बातों का  एक बार बस कदम बढ़ाए हर दूरी हल हो जाती है  आलिंगन अब मन का होगा  देह कहीं अमरत्व पा गयी  एक बार सब धुंध हटे तो लब सब कुछ कह जाये हैं

तु हारा तो मैं हारूंगा

  बाँट लेना वेदना सब संताप मन रखना नहीं  सामना करना है जग से फिर कभी मुड़ना नहीं  तु नदी है तोड़ लेगी  राह की मुश्किल सभी  याद हो एक साथ तेरे ढाल है पहाड़ की  छाँट लेना अरण्य सब अकुलाना जरा नहीं भेद देना जग ये सारा फिर कभी रुकना नहीं  धार है तु काट लेगी निष्ठुर कोई बूटा सही  याद हो एक साथ तेरे पाषाण है पहाड़ की  नाद हो विकराल तब भी त्रास मन रखना नहीं  किकना सब जोर से तब फिर कभी झुकना नहीं  उद्धघोष है गांडीव का तु रणबांकुरे तुझसा नहीं  याद हो एक साथ तेरे आवाज लौटी पहाड़ की  तु हारा तो मैं हारूंगा शल्य सा अधिरथ मैं  नहीं  अलिखित रहें जयकाव्य मेरे पर तु कभी डरना नहीं 

वो आँखे

  चुप रहती थी, कुछ कहती थी  उठ झुक शरमा जाती थी  हर किस्से हर बात पे मुझसे अनकही कहानी कहती थी  वो आँखे बोलती थी  नटखट थी ख़ामोशी की, जता बहुत कुछ जाती थी  हर रिश्ते में मुझसे जुड़ती गीत ग़ज़ल लिखवाती थी  वो आँखे बोलती थी  सुनती थी औरो की सबकुछ अर्जी मुझको दे जाती थी  ना जाने ना सुने बिना ही दोषी मुझको ठहराती थी  वो आँखे बोलती थी छुपी किताबों से रहती थी पढ़ती मुझको रहती थी  हर ताने हर शब्द पे मुझसे  बदला लेते दिखती थी  वो आँखे बोलती थी डबडब करके भर आयीं थी छल छल छलका जाती थी  तोड़ गयी सारे रिश्तों को   नज़र चुराती दिखती थी  वो आँखे बोलती थी सावन भिगो गया है फिर से बरखा मोती  लायी हैं  जोड़ रही है अब तारो को क़ालीन बनाती दिखती हैं वो आखें बोलती हैं  कुछ थमी हैं कुछ बही हैं पास वो आते लगती हैं  रचा रही यादों के पुल पर मन संगम सा बनाती हैं  वो आखें बोलती हैं 

मैं कौन हूँ तेरा ?

 तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा  तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों"  तु वो जो मुझे सांस और अहसास दे गया  सादगी अच्छी लगी मासूम तु  लगा  कब मन से मन जुड़ा यही मालूम न पड़ा  तु समर्थ सा लगा मेरी मंजिल का एक निशां।   तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा  तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों"  साहस रहा इस मन का जो मंजीत तु रहा  जब थक गया था हार कर एक प्रेरणा रहा  दूर रहके कब तु यूँ नजदीक आ गया  तु अपना सा लगा कोई अपनों सा एक निशां।।  तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा  तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों"  सिमित रहा मन प्राण जो वो गीत तु रहा  चुप रहा संकोच था  तु शक्तिपुंज रहा  ह्रदय की एक आवाज़ थी सच बोलता लगा  तु मन से ही जुड़ा लगा मन का कोई निशां।।     तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा  तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों"  तु हार में भी जीत है कोशिश है तु रहा  हर सोच की दिशा रहा तु कर्मपथ रहा  हर नयीं पहल का तु प्रयास सा रहा  तु इमाम सा लगा मेरा कोई ज्ञान का निशां।।  तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा  तु अब भी

ताज वो मेरा

 जो दबे रहे भावों में मेरे निखरा देखा है उनको चुप-चुप लिखते थे जिनपर पढ़ते देखा है उनको  डरा सहमा रहता था जो कहते देखा है उनको  बस दूरी में जो  रहता था पास आ रहा अब है।।  जो थे खुले समुन्दर अपने सिमटा देखा है उनको  तब भी वैसा ही दिखता था ताज वो मेरा अब है बंद करूँ दरवाजे सब तो पास खड़ा वो अब है  मन ही मन मै वो रहता था साथ चला जो अब है।।  हर रिश्तों से अलग रहे पाना क्या खोना उनको मन में बास रहा जिनका क्या गले लगाना उनको   गहन अँधेरा था जब भी वो बीज पड़े थे मन मे खुशियों की फसलें लहराई महक बिखेरे अब है।।  

कुछ इजारा साथ की

  राह के दो छोर यूँ तो तय हैं मिल सकते नहीं  दूरियां कम कर रहे हैं हम जो बरसों दूर थे  यूँ किनारों को चली हैं कश्तियाँ मझधार की  हमने थामी है पतंग जो डोर है किसी और की ।।  प्राधान्य हों जब काम हम सब बता सकते नहीं  बात हम अब  कर रहे हैं जो बरस चुप ही रहे  यूँ तो मंदिर में सजी है  श्याम संग राधा सदा  हमने मन में है रखी मूरत रही किसी और की।।   लाम पर हों मन खड़े यूँ मिल गले सकते नहीं  अहसास सा कुछ कर रहे हैं जो बरस छुए नहीं  यूँ सदा से मुक्त हैं वो हर हलफ़ मेरे लिए  हमने एकतरफा ली हैं कुछ इजारा साथ की।।