मैं कौन हूँ तेरा ?

 तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा 

तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों" 


तु वो जो मुझे सांस और अहसास दे गया 

सादगी अच्छी लगी मासूम तु  लगा 

कब मन से मन जुड़ा यही मालूम न पड़ा 

तु समर्थ सा लगा मेरी मंजिल का एक निशां।  


तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा 

तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों" 


साहस रहा इस मन का जो मंजीत तु रहा 

जब थक गया था हार कर एक प्रेरणा रहा 

दूर रहके कब तु यूँ नजदीक आ गया 

तु अपना सा लगा कोई अपनों सा एक निशां।। 


तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा 

तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों" 


सिमित रहा मन प्राण जो वो गीत तु रहा 

चुप रहा संकोच था  तु शक्तिपुंज रहा 

ह्रदय की एक आवाज़ थी सच बोलता लगा 

तु मन से ही जुड़ा लगा मन का कोई निशां।।  

 

तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा 

तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों" 


तु हार में भी जीत है कोशिश है तु रहा 

हर सोच की दिशा रहा तु कर्मपथ रहा 

हर नयीं पहल का तु प्रयास सा रहा 

तु इमाम सा लगा मेरा कोई ज्ञान का निशां।। 


तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा 

तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों"


तु विश्वाश है मेरा कोई स्नेह रूप सा 

जब हार सा गया था तु आया है जीत सा 

भावना नई लगी  विश्वाश दे गया 

तु खुद को जरा हार कर मुझे हरा गया।।  


तु अब भी  मुझे पूछता मैं कौन हूँ तेरा 

तु अब भी मुझे पूछता "चुना गया मैं क्यों"

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