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Showing posts from May 30, 2021

जीवन है तू

 मैं रहा जीवन रहा और बात सब आधी रही  एक अँधेरा जीतना है साथ तू दे दे  जरा  सब हार कर जो है मेरा मैं जीत सकता हूँ नहीं  अभिशप्त जीवन है मेरा तू साथ चल दो पल सही  मैं उजाला जीतकर अपनों को खो सकता नहीं  दीप के आशय रहा हूँ साथ तू दे दे  जरा  अब मशालें बालकर ये अँधेरा मिट सकता नहीं  अपरिपूर्ण जीवन है मेरा तू दीप सा जल तो सही  मैं शहर मै गांव था पर  अधजली बस्ती रहा  एकरसता राह मेरी साथ तू चल तो जरा  घर के कोने मौन को मैं दूर कर सकता नहीं  त्याग जीवन है मेरा तू कर भरोसा तो सही कोप का हल ये नहीं कि बात न करना मुझे  सह न पाया विक्षोव कोई बात तू कह तो जरा  मन के साये धूप को मैं कब अँधेरा कर गया  इस घर में है सम्मान तेरा देख जाना तू कभी  कह रही है आस मेरी पूछते अरमान हैं  कब तलक होती रहेगी ये परख अप्रतीति की ?

जानता सीमाएं हूँ

 बनना पेड़ कभी झुक जाना पर टूट न जाना तु बतला जाना  बोझ लगूँ मैं जानता सीमाएं हूँ  तटिनी को राह बदलते हिमगिरि गलते देखा है  मैंने पक्षी के चूजों को नीड  से उड़ते देखा है  सजना रूपवती से रूपों में मूरत न बनना तु बतला देना खोट लगे जब जानता सीमाएं हूँ  अक्षत के चावल फूलों को कूड़े में पड़ते देखा है  मैंने बीज धरा पर पड़े हुए ही खुद सा मरते देखा है  सुनना सम्मानों की सीमा तक तब रोक भी लेना तु  बतला देना चोट लगे जब मैं जानता सीमाएं हूँ  पेड़ो से साखों को कटते तुझको पहले भी जाते देखा है  मैंने उत्श्रृंखल जलधारा को जलधि में मरते  देखा है।। 

बनता है

 नदी किनारे गांव बसा हो बहता बचपन तो बनता है  ख़ाली खेत सबेरे हों तो चिड़ियों का कलरव बनता है  साफ़ चाँदनी रात रहे तो तारों को गिनना बनता है  जुगुनू मन के द्वार खड़ा हों टिम-टिम गिनना तो बनता है  अखरोट कहीं जब सुख गए हों पत्थर उठाना तो बनता है  आसमां कभी जब चुनौती दे तो आँख उठाना तो बनता है  छूटे हाथ मिले हों जब फिर से गले लगाना तो बनता है  सावन आये तो  पेड़ो पर  झूला झूना तो बनता है  तानें हों लाखों नजरों के एक शरारत तो बनती है  इश्क़ तुम्हारा हों जग जाहिर फिर भी छुपाना तो बनता है  थोड़ा नटखट होना तो बनता है जीवन जीना तो बनता है  लौट भी लें  बचपन में थोड़ा खुद को जीना तो बनता है 

तु मेरी गंगा रहे

 हो कभी विराम जीवन तु वहाँ बहता लगे  तु मेरी गंगा रहे मैं पा भी लूँ अपनी जमीं  पंचतत्वों मै समाहित ये मेरा दर्शन रहे  मैं मिलूँ उस ठौर पर पहचान तु मेरी रहे  जी रहा मैं पेड़ जीवन साथ तु बढ़ता लगे  तु मेरी वो सुगंध हो मैं फ़ैल जाऊ जग सभी  ज्ञानचक्षोः में  समावित ये मेरा दर्पण  रहे  मैं चलूँ उस  राह पर पहचान तु मेरी रहे  चल पड़े जिस राह पर तु साथ देता सा लगे  तु मेरी मंजिल रहे मैं कर्म कर जाऊ सभी  उद्यमिता की पराकाष्ठा का ये अर्पण रहे  मैं चलूँ उस ओर और पहचान तु मेरी रहे  आ बढ़ा दे हाथ तु चल दूर तक चलता लगे  पा भी लूँ अपनी जमीं  और तु मेरी गंगा रहे।।।। 

जीवन का सार

 जिसको माना था बरसों से जाना है कुछ दिन से  यूँ ही नहीं था समुन्दर गहराई उसकी जीवन से  एक रूप दिखा जो उसका गर्व हुआ है आज  कि लाखों में जो चुना था वोही इस जीवन का सार  जिसको एक टक देखा बरसों पूजा है पहली बार  यूँ ही नहीं वो शिवालय आराधना सी  जीवन से  एक रूप सजोया हमनें और लिख दी बात हज़ार  कि माँगा था जिसको वोही इस जीवन का सार  जिसको देखा था बरसों से समझा है अबकी बार  यूँ ही नहीं वो हिमालय प्रताप रहा  जीवन से  एक रूप बसाया हमनें आभास हुआ है आज  कि अपनों सा जो चुना था वोही इस जीवन का सार

जिम्मेदार !

 एक टक देखा जिसको अपनाया बार हज़ार  भीड़ भरे बाजारों में सदा लगा था पास  वो कहता है मुझसे वो लड़ता है मुझसे बरसो बाद मिलन के तुम ही हो जिम्मेदार।।  त्याग समर्पण देखा उसका खुद से कहा हर बार चुप ही रहे थे हम  वो था नजरों का अभिमान  वो पूछता है मुझसे वो लड़ता है मुझसे  पढ़ नहीं  पाए नज़र क्यों तुम ही हो जिम्मेदार।। घिरा रहा था सबसे सम्बन्ध रखे थे लाम  लोगो की सुनी सुनाई था उनको ये आभास  वो कहता  है मुझसे वो लड़ता है मुझसे  खुश रह नहीं पाए तुम बिन तुम ही हो जिम्मेदार।। स्पर्श रहा गीतों का कविता की आवाज़  बोल न पाए हम कुछ मौन रहा सम्मान  वो कहता  है मुझसे वो लड़ता है मुझसे  कह नहीं  पाए  क्यों तुम ही हो जिम्मेदार।। सच कहते है वो भी कहनी थी सारी बात  हारना ही था तो खोते कहकर साथ  सच कहता है मुझसे सच लड़ता है मुझसे  कह नहीं  पाए  क्यों हम  ही हैं  जिम्मेदार।।