तु मेरी गंगा रहे
हो कभी विराम जीवन तु वहाँ बहता लगे
तु मेरी गंगा रहे मैं पा भी लूँ अपनी जमीं
पंचतत्वों मै समाहित ये मेरा दर्शन रहे
मैं मिलूँ उस ठौर पर पहचान तु मेरी रहे
जी रहा मैं पेड़ जीवन साथ तु बढ़ता लगे
तु मेरी वो सुगंध हो मैं फ़ैल जाऊ जग सभी
ज्ञानचक्षोः में समावित ये मेरा दर्पण रहे
मैं चलूँ उस राह पर पहचान तु मेरी रहे
चल पड़े जिस राह पर तु साथ देता सा लगे
तु मेरी मंजिल रहे मैं कर्म कर जाऊ सभी
उद्यमिता की पराकाष्ठा का ये अर्पण रहे
मैं चलूँ उस ओर और पहचान तु मेरी रहे
आ बढ़ा दे हाथ तु चल दूर तक चलता लगे
पा भी लूँ अपनी जमीं और तु मेरी गंगा रहे।।।।
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