Posts

Showing posts from August 20, 2023

थोडी दूर

तुझे मनाने के लिए एक उम्र कम है जिन्दगी फिर भी बस तुझपे कुर्बान है जिन्दगी  मेरे अहसासों का उपहास ही सही फिर भी राहों की तलाश तुझ तक है जिन्दगी शब्दों से निकलकर रचना है खुद का संसार पगडंडियों पर अधूरे ही सही छोडने हैं निशां गुस्से की दुकान से खरीदना है समर्पण मुझे  आ साथ तो कुछ दूर अपनी दुनियां बसानी है जिन्दगी

आखिरी

आखिरी एक उम्मीद है सफर जिन्दगी या तु संग है या जीवन कहाँ अजनबी उस सत्य की तलाश में हूँ जो शायद मेरा नही मैं रोहताश नही जो ॠण तेरा उतार दूँ उम्मीदों की अग्नि हूँ बन्धनों का फेरा भी जलती हुई चिता हूँ स्नेह का हवन भी नदी का ऊफान हूँ बच्चों की मुस्कान भी मैं शकुन्लता का अभिशाप नही जो तुझे भुला दूँ कविता में रचा बसा एक खोया संगीत हूँ कहानी के विन्यास का एक अधूरा मर्म हूँ सजती हुई चिता का आखिरी स्पर्श हूँ मैं पदमावत का जौहर नही जो मुह मोड लूँ उम्मीदों की साख पर झूला डाले हूँ मैं सावन की शाम में धूप नैवेध्य लाये हूँ मैं ठहरा हूँ जिस जगह बस तेरे इन्तजार में हूँ मैं वो भाव नही जो तेरा होकर तुझसे दूर रहूँ

आयेगा तो सही

उम्मीदों का एक तारा दिखता तो है दूर कहीं  वहीं आशंकाओं के बादल लुकाछिपी करते हैं कहीं बूँदें गिरती तो हैं स्नेह की इस रेगिस्तां पर  किकर ही सही आशाओं का बसन्त आयेगा तो सही तस्वीर नही न वो बारिश है न हाथों में हाथ कहीं न मंहन्दी का रंग है न गात पर छापों का निशां कोई बातों का अपनापन और लबों की सूर्खिया नही बरसों के बाद ही सही तु खेवनहार आयेगा तो सही

प्राण तु है

तेरे बिन जीवन रहा खाली एक जंजाल तेरे संग जीवन बना कविता गीत समान दो घाटों की दूरी पर बही है नदिया पार एक पुल बनाकर भर गयी तु जीवन में अभिमान कदमों को दिशा मिली मन को एक प्रवाह रचता बसता तु गया पत्थर को  जैसे प्राण मन की दुविधा खडी रही सांसो को ठहराव अब रंग ले मनरे तुझसे है जीवन की पतवार

बैरागी

मैं बैरागी ही रहूँगा न चाह रही सम्मान की न तेरे मोह की इच्छा  तुझ में खोकर  खुद को समर्पित  मुझे सच पर जीना होगा तेरे मन की तु जाने,  मैं बैरागी ही रहूँगा सोच रही दिनभर से तुझपर न प्रश्न कोई पुछूँगा न जताकर तुझपर अपना हक  तेरे नाम की धूनी रमूँगा तेरे समय पे छोडा है तुझको मै पलपल याद करूँगा मैं बैरागी ही रहूँगा इन्तजार सांसों का मेरी न आस कोई पालूँगा न जाऊँगा तेरी इच्छा पारे  महादेव से अरज करूँगा तेरे निर्णय पर छोडा तुझको मैं अक्षर सः निभाऊगाँ  मैं बैरागी ही रहूँगा