थोडी दूर

तुझे मनाने के लिए एक उम्र कम है जिन्दगी
फिर भी बस तुझपे कुर्बान है जिन्दगी 
मेरे अहसासों का उपहास ही सही
फिर भी राहों की तलाश तुझ तक है जिन्दगी

शब्दों से निकलकर रचना है खुद का संसार
पगडंडियों पर अधूरे ही सही छोडने हैं निशां
गुस्से की दुकान से खरीदना है समर्पण मुझे 
आ साथ तो कुछ दूर अपनी दुनियां बसानी है जिन्दगी

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण