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Showing posts from April 17, 2022

अपूर्णता

 ये अपूर्णता है जीवन की  जो पूर्ण मुझे कर जाती है  सम्पूर्ण समर्पण आकांक्षा वो विश्वास बढ़ा सा जाता है   कुछ मिलता सा कुछ खोता सा  एक द्वन्द सदा से जीता हूँ  सालों के इस जीवन में  ये सार्थक साल समझता हूँ  स्नेह किया परिभाषित है  एक मारे डर के साये हूँ  जो पा सा लिया अमूल्य है  बस अब  खोने से डरता हूँ  एक कविता सा रचता सागर  एक यादों की परिछायी  एक मीरगतृष्णा सी जीवन की  मैं दौड़ लगाए बैठा हूँ  पथिक सदा लक्ष्यों तक कब है  कुछ राह सुहानी होती हैं  कुछ चलता है साथ साथ  कुछ जीवन की तन्हाई है  रे-मन  कहता निर्णय तेरा  साथ चुने या तन्हाई  छोटा सा ये मन हैं मेरा  छोटी तुझसे रुस्वाई  "हो अपूर्णता जीवन की  ये पूर्ण मुझे कर जाती है"  सम्पूर्ण समर्पण आकांक्षा तु विश्वास बढ़ा सा जाता है