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Showing posts from May 1, 2022

झकझोर

 जब उत्ताप के ज्वार पर  बाँहों भींच लिया था तुमने  सांसों की रचती खुशबू पर  एक अधिकार दिया था तुमने  स्पर्शों के कोमल आलिंगन  रोम रोम हर्षाते हैं  यादों की मीठी शामें  तन मन झकझोर सी जाती हैं  जब सर्द हुई पंखुड़ियों पर  कोमल छुवन रखी थी तुमने  खुले केश के कानन पर  हक़ का निज़ाम दिया था तुमने  सांसों की बढ़ती गहराइयाँ  बाँध समय को देती हैं  चेहरे की वो प्रखर छवि  तन मन झकझोर सी जाती हैं  जब दोहन भौतिक तापों पर  विश्वास रिश्तों के रखे तुमने  अधूरे अनबने बंधनों पर  समर्पण का इतिहास लिखा है तुमने  आशाओं के बनते पूल  मिला मनों को देती है  गहरी नीवों पर बढ़ती राहें   तन मन झकझोर सी जाती हैं  हुआ है बंधन रिश्तों का  हुआ है रिश्ता अपनों से  आपको को अपने से पाना  द्वन्द यही जो लम्बा है  पाने खोने पर टिकी उम्मीदें  तन मन झकझोर सी जाती हैं 

अंतिम पाने का

चाह दबाकर बीच मनों के  लम्बी राह तकूँगा मैं  नंदी सा इंतजार करूंगा  एक तेरे आदेश का  आशा के कोलाहल मन में  मर्यादित मौन रहूँगा मैं  डुबकी बारम्बार करूंगा  मन तन भीग जाने का  सूने से इस परिवेश में  रचता शब्द रहूँगा मैं  जीते जी संघर्ष करूंगा  तुझको अंतिम पाने का