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सर्वस्व

 कभी समय की बात लिखूंगा  जो मेरा होकर तेरा है  बरसो तेरे संग जिया है  हर ख़ामोशी के लम्हों में  शाम सुबह और रातों दिन  ताँका तुझको झाँका है  तुझसे ज्यादा बार लिखा है  नाम तेरा कोरे कागज़ पर  चलती दुनिया संग तेरे है  मेरी दुनियां तुझ तक है  तुझसे ज्यादा बार रचा है  रूप तुम्हारा इस मन पर  सबके होते द्वन्द समय के  तू दो बातों पर रुक जाता है  मैं तो आखर लिख लिख भरता  खाली कोना इस मन का  होती हैं कुछ बंद खिड़कियां  मैं खुली किताब हूँ जीवन की  नहीं रखे मन रोशन्दा हैं  मैं रात अँधेरा जगता हूँ  गुणा भाग मेरा लक्ष्य नहीं है  सतत राह अजमाती है  मन की तेरे तु जाने साथी ! मेरा सर्वस्व तुम्हारा है  कभी समय की बात लिखूंगा  जो तेरे संग में बहता है  परवाह कहाँ कब कितनी तुझको  समय लिखेगा समयों पर