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Showing posts from June 7, 2020

बात

बात स्नेह की कब थी  सम्मानों की थी  मनाना किसने चाहा था  बात,बात की थी  फ़ासलों में रहना या  फ़ैसला करने की थी  बात साथ चलने की कब थी  निभाने की थी   बात देखने की कब थी नज़ाकत क़दमों मे थी दायरे तो पहले से थे  दूरियाँ बढ़ाने की कब थी  गुमशुम थे सब नाराज जताने की कब थी  बात पाने की थी ही नही खोकर भूलने की न थी

मैं पत्थर था

जानता था वो नदी सा था उमड़ घुमड़कर आया था खड़ा रहा मैं पत्थर था नदी होता तो बह जाता किनारे कब बचे वेग था अवसादों का  साथ था हिला नहीं मैं पत्थर था मिट्टी होता तो बह जाता बहना था जिसे वो बह गया तू भी रंगो में रंग गया खिसका नहीं मैं पत्थर था रंग होता तो बह जाता