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रिश्तों के भाव

रिश्ते कब अवैध होते सब कुछ मन के बाँधे रहते हैं कोई केवट सा नाव बिछाता कुछ शबरी के बैर मिठा सा  साथ कहाँ सब चल पाते हैं कुछ दूर मनों से बसते हैं कोई कृष्ण सा चावल ढुंढता कुछ मीरा का एकतरफा सा वक्त कहाँ एक सा होता है कुछ बस के बेबस होते हैं कोई चिता पर आग लगाता कुछ जलकर खाख़ होता सा  भाव कहाँ सब बदल जाते हैं  कुछ मन बीज पङे से होते हैं  कोई दर्द वेदना का सहता  कुछ आघात लिए है भाग्यों सा  रिश्ते कब अवैध होते सब कुछ मन के बाँधे रहते हैं कोई कह जाते पीङ नीङ सब कुछ राह ताकते रहते हैं 

तु अनुज्ञा माँ सी

 मेरे अपने दुःख में भी  तु  बांध गया है अपनों  से  हैं जो वो बिन डोर बंधे हम  तु बांध गया अनुबंधों से  आशीषों का साथ रहा  तब ही तुमको पाया है  हैं वो जो हम कदम फूँकते तु बढ़ आया विश्वासों से  मेरे कम होते गावों में रिश्ते  तु शहर बसाता अपनों से  हैं वो जो हम अलग खड़े से  तु  देता साथ अहसासों से  मेरे गिने चुने से सपनों  में  तु आस जगाता जीवन है  हैं वो जो हम बिन रिश्तों के  तु सबसे पास मनों के है  ख़ाली हुई जगह जो घर में  तेरे आकर भरी लगी  हैं जो बाबा पास नहीं अब  तु अनुज्ञा एक बस माँ सी है