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Showing posts from November 13, 2022

तुमसे है

खोना पाना तुमसे है  स्नेह समर्पण तुमसे है  जगती रातें बहती शामें चलती सांसें तुमसे हैं लिखना पढना शब्द ये गढना सार समर्पण तुमसे है कहती कविता हंसती बातें मिलती सांसें तुमसे हैं  रोना खोना तुझसे है साथ समर्पण तुमसे है दिन बीता जो साथ अकेले यादें सांसें तुमसे हैं  हाथ हथेली तुमसे है बेखुदी समर्पण तुमसे है हाथ पसारे बाँहें भींचे जिन्दा सांसें तुमसे हैं 

फ़िकर

 हम समय को साथ बाँटें ये कहाँ मुमकिन सदा  याद हो मन साथ कोई ये छुपा रहता कहाँ  यूँ तो होंगे काम कुछ हर दिन मिला जाता कहाँ  एक है अहसास गहरा संग बहता सा लगा  हम नदी सा अब निकलकर छोड़ आये हैं पहाड़  रास्ते बहते लगे पर है समुन्दर वो कहाँ  यूँ तो हमको मंजिलों की अब फ़िकर रहती कहाँ  साथ है अहसास तो तू साथ अपने हैं सदा  हम सफर में साथ हैं बढ़ते रहे राहें सदा  आस के कुछ बीज पनपे हैं कलश में यूँ सदा  यूँ तो तो हमको रूठना और यूँ मानना है सदा  एक है गहरा निशा जो साथ देगा यूँ सदा 

एक तस्वीर

 तस्वीर जो तेरी मेरी मन छाप घर करके गयी  एक समर्पण बानगी  एक साथ में ठहरा गयी  हों युगल समवेत से  मन उतरकर जो रही  बाँह जो थामी रही  एक मकां छत सी लगी  जो सदा पूरक लगे  वो साथ क्यों चलते नहीं  टेक कर सर रख गयी  और मन की कविता बन गयी  है यही निश्चय सदा  बे झिझक जीना बंदगी  दे करके यूँ सांसे सभी  मन जित करके रह गई 

कदम रुकते नहीं

 खुशनुमा है जिंदगी  कुछ बात होगी कहीं  तु समर्पण लिख गया  मैं नाम तेरे जिंदगी  हों सदा दिन एक से  ये नहीं माँगा कभी  तु पास रहना मन सदा  मैं साथ तेरे जिंदगी  हर शाम की ताबीर हो  ये जरूरी तो नहीं  कोशिशें करना सदा  मैं दौड़ लूँगा जिंदगी  हो सदा सोचा सभी  जानता मुमकिन नहीं  सोच में रखना सदा  मैं पा ही लूँगा जिंदगी  साथ हो स्नेह जब  तब कदम रुकते नहीं  कह भी जाना बात सब  मैं बाँट लूँगा जिंदगी 

हसीं शाम

 शाम थोड़ा नशे में जो मदहोश थी  अपने आगोश में चाँदनी भर गया  वो सिमटकर कहीं घुल गया साथ में  मैं बिखरकर वहीँ और जम सा गया  सुर्ख होते कमलदल खिल ही उठे  भीगी बूंदों का उन्माद मन भर गया  जकड़कर के बाहें खुली ही नहीं   लाल चेहरे का समर्पण पढ़ सा लिया  बात निकली जो मन से मन कह गयी  शब्द आखों में आकर ठहर ही गए  पाँव में पाँव रखकर चले दो कदम  उससे आगे कहानी समर्पित रही  होंठ होंठो से प्रतिदान कर ही गए  बात चुप ही रही और बदल भी गयी  होश थे फिर भी थोड़ा सा बेहोश से  एक हसीं शाम जीवन की यूँ भी रही