फ़िकर

 हम समय को साथ बाँटें ये कहाँ मुमकिन सदा 
याद हो मन साथ कोई ये छुपा रहता कहाँ 
यूँ तो होंगे काम कुछ हर दिन मिला जाता कहाँ 
एक है अहसास गहरा संग बहता सा लगा 

हम नदी सा अब निकलकर छोड़ आये हैं पहाड़ 
रास्ते बहते लगे पर है समुन्दर वो कहाँ 
यूँ तो हमको मंजिलों की अब फ़िकर रहती कहाँ 
साथ है अहसास तो तू साथ अपने हैं सदा 

हम सफर में साथ हैं बढ़ते रहे राहें सदा 
आस के कुछ बीज पनपे हैं कलश में यूँ सदा 
यूँ तो तो हमको रूठना और यूँ मानना है सदा 
एक है गहरा निशा जो साथ देगा यूँ सदा 

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