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Showing posts from July 4, 2021

मिट्टी के उपहार

 हम मिट्टी के उपहार हैं मिट्टी में मिल जाना है  जीवन में आशिष रहे हैं जो उनकी आस निभाना है  तु बाबू की शान है गुड़िया मंजिल तक तो जाना है  खोना पाना साथ लिखेंगे यांदें संग रह जाती  हैं  हम मिट्टी के उपहार हैं मिट्टी में मिल जाना है हम एक पुरानी चादर हैं घिस घिस कर फट जाना है जो कर्म किये जो करने हैं वो भाग्यों की रेखाएं हैं  तु अम्मी की आन है गुड़िया सपने सच कर जाना है  हार जीत हम साथ लिखेंगे वादें संग रह जाने हैं  हम मिट्टी के उपहार हैं मिट्टी में मिल जाना है हम ढलती शामे गौचर हैं खूटें से बंध जाना है  कुछ देखा है कुछ सोचा है कुछ युहीं छुपे रह जाना है  तु भैया की शान है गुड़िया गर्व बढ़ा कर जाना है  रोना चिल्लाना साथ करेंगे बातें संग रह जानी हैं  हम मिट्टी के उपहार हैं मिट्टी में मिल जाना है हम आशाओं के  पत्थर हैं नीवों पर चिन जाना है कुछ खोया है कुछ खोना है ये दर्द साथ ही जाना है  तु बच्चे का दमखम गुड़िया राह तुझे दिखलानी है  मन तो  तेरे  साथ रहा है साथ मन रह जाना है   हम मिट्टी के उपहार हैं मिट्टी में मिल जाना है

जिंदगी

 जिंदगी के सफर में उम्मीद कोई भी तुझसा नहीं  खाली से राहों में भटका गुमनाम सफर कोई सही  काग भुषण्डि रहा है मन भी जमता कोई और नहीं  जा आईने देख ले कोई मेरा सा वजूद मिलेगा  जिंदगी के सफर में आस कोई भी तुझसा नहीं  कोरे पन्नों पर रच डाला इतिहास रहा है मनन कोई  गोबर मन भी रहा गणेश सा पूजा जाता और नहीं  जा पीपल से पूछ के आना मेरा सा वजूद मिलेगा  जिंदगी के सफर में विश्वास कोई भी तुझसा नहीं  रिक्त स्थानों पर लिख डाला शब्द तुझसा और नहीं  कर कफ़न मांग ले खुद से भी अपनों सा कोई और नहीं  जा गंगा से पूछ के आना तेरा सा बजूद मिलेगा।।। 

जग की प्रीत

 आएंगे जंगल के राजा कहते हैं वो पीर फ़क़ीर  फिर होगा क्रुन्दन मनों का जग की ऐसी रही प्रीत  फिर पहरे होंगे निजाम पर शक की एक सीमा भी  घुल मिल मिट्टी में शामिल मैं बीज आस के बोऊँगा  अपनों की बाट देखते आस सजाये हैं दो लोचन  फिर होगा दूरियों में इजाफा जग की ऐसी रही प्रीत  फिर मन भी हिचकोले लेगा क़दमों की एक सीमा भी  घुल मिल तेरी प्रीत मै शामिल मैं बीज ख़ुशी के बोऊँगा  'आएंगे मनमीत हमारे कहते हैं 'मंजीत हमारे' फिर होगा एक द्वन्द मनों का जग की ऐसी रही प्रीत फिर वो अंगुली पकड़ मुड़ेगी नजरों की एक सीमा भी  घुल मिल तेरे आँगन में शामिल  मैं बीज प्रेम के बोऊँगा 

अधर

 एक कहानी अधरों की मन से आज  सुनाता हूँ  लालायित शब्दों का कोई अर्थ सुनाता जाता हूँ  लाल कमलदल पंखुड़ियों सा खिलता एक सवेरा है  कोमल सी काया का कोई वो भी एक रखवाला है  पास बुलाते अक्सर से  वो दूर दूर से देखे थे  छुवन कहाँ महसूस हुई थी मन आस खिलाये थे  टेसू के जंगल में कोई सेमल के से फूलों सा  गदरायी काया का कोई वो भी एक रखवाला है यूँ तो ढंग से याद कहा थे स्पर्श रहेगा याद सदा  समता है दलदल में जैसे अश्व एक सा देखा है  फूलों की घाटी का कोई कस्तूरी की खुशबू सा  बरखान की मरीचिका का वो भी एक रखवाला है

हम रहवासी

हम रहवासी इश्क की नगरी राह रही गुमनाम सदा मंजिल के वो ठौर ठिकाने मिले कभी कभी त्याग दिये कान्हा की मुरली में बसते शब्द बुलाते रहे सदा जो खोना था खोया है कभी पाया है कभी छोङ दिये सीता के त्यागों की ठोकर खुद पर खाते रहे सदा त्याग समर्पण दिखा नही कभी संताप सहे कभी झेल गये पांचाली के बिखरे  वस्त्रो की लाज बचाते रहे सदा अपना कुछ सर्वस्व लुटाते कभी स्वपन सजाये कभी तोङ दिये   

एक तारा

 कुछ कसमें खायी हैं मैंने कुछ कसमें तोड़ी हैं मैंने  कुछ जीवन की राहों में उम्मीद जगायी है मैंने  आशाओं की धरती पर एक पौध लगायी है मैंने  एक किरण को आते देखा है छन कर रोशनदानों से  खेत प्रेम का जोता है बहते से तेरे आंसू से  कुछ भुवनं हथेली पर लेकर विश्वास जगाया है तुमने   कुछ काँपते अधरों से आवाज लगायी है तुमने  सुखी पड़ी कुछ क्यारियों में फसल आस की बोई तुमने  एक नदी का उद्गम देखा है मिलकर एक हिमानी से  रजकण चमकते देखा है विश्वासों के नीव तले कुछ अंतर्मन का कलह हटा जो सोपान सजाये हैं हमने  कुछ फैले से आसमान में इंद्रधनुष सजाया हमने  बिछड़े  राहों पर मिलकर फिर नदीद्वीप बनाया हमने  एक ममता  का त्याग देखा है मिलकर एक हिरणी से  एक तारा टिम टिम देखा है ओखल के अंधियारे मै

रुकना और रुकाना है

 जीवन की हर गलियों के कुछ ख्वाब अधूरे रहते हैं  माँ- बाबा पुरवा के कुछ प्रामीत्य अधूरे रहते हैं  कुछ खोना था कुछ खोना है सर्वस्य यहीं रुक जाना है  इन सांसो के बंधन को भी रुकना और रुकाना है  जीवन की हर गलियों के कुछ प्रयास अधूरे रहते हैं  सत्य कर्म योजन के कुछ सपन अधूरे रहते हैं  कुछ सीमाएं कुछ कसमें हैं आस यहीं रुक जानी है इस मन के हर परिरंभन को रुकना और रुकाना है  जीवन की हर गलियों के कुछ उत्साह अधूरे रहते हैं  हार जीत से आगे भी कुछ सम्बन्ध अधूरे रहते हैं  कुछ अपनापन कुछ अपने हैं संजोग यहीं रह जाने हैं  इन यादों के सम्पर्कों को रुकना और रुकाना है  खोना जीवन सत्य रहा हैं रेखाओं को बांचा है कोशिश कर अब नदिया पर अवरोध एक बनाना है  कुछ बह जाये कुछ रुक जाये नीर अनवरत रखनी है  इन चाहों को बहने से अब रुकना और रुकाना है