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Showing posts from May 26, 2019

चल फिर

चल प्रयत्नों के कुछ रास्ते बदल दें  मंज़िलों के अदृश्य सपने बदल दें  लम्बी और अकेली होंगी अब सड़के  ख़ालीपन के कुछ इम्तहां दे दें  सम्मानों की पट्टी को मन में सहेज रख दें अपनो के कन्धों पर सर रख रो दें  मन और कर्म के संघर्षों का सामना कर अकेलेपन के कुछ पल याद कर लें अपने को बदलें नही जहां के साथ हो लें  सबका सहारा बने सबके साथ चले चलें  जीवन और स्नेह के तानेबाने मे घुलकर अपनों के जीवन मे चांसनी घोल दें   

कुछ तो नाता है

यूँही मिट्टी की कसक नही आती वो सौंधी सी ख़ुशबू नही आती  कुछ तो होगा अपनो सा नाता  यूँही बुज़ुर्गों की दुआएँ नही मिलती  यूँही हर कोई हिमालय नही होता  वो अपनो सा क़रीब नही होता  कुछ तो पवित्रता होगी सोच मे  यूँही कोई सम्मान का हक़दार नही होता  यूँही किसी पर विश्वास इतना नही होता  वो दोस्त न होकर भी इतने क़रीब न होता  कुछ तो नाता होगा भावनाओं का  यूँही तेरा सब कोई मेरा अपना सा न होता 

बिछड़ने का अहसास

तुम दौड़ लो मैं भी पहुँचूँगा  मक़ाम सबके अपने है यहाँ   अभी मंजिल की जल्दी नही  यायावर तो तुम थे हम भी हैं तुझसे बिछड़ने का अहसास ले लूँ  तुम छू लो आसमां मै भी छाऊँगा  कोशिशें सबकी अपनी है यहाँ  अभी सबकी दौड़ मे मै नही  सबके चले रास्तों पर न चल सका  अभी तुझसे बिछड़ने का अहसास ले लूँ तुम अपनो के पास रहो मैं भी जाऊँगा  रिश्ते नाते सबके अपने हैं यहाँ  अभी वो पहाड वापस बुलाते नही  नही सब कोई अपने से लगे कभी  अभी तुझसे बिछड़ने का अहसास ले लूँ

निशाँ मिटते नही

तु सब पाले बदल भी ले  तब भी स्नेह भूलाया कहाँ जायेगा  अविस्मृतियों के चिन्हों को मैंने  पत्थर से मन पर उकेरा है मन धूमिल हो भी जाय  तब भी यादों को कौन मार पायेगा  बर्फ़ीले रेगिस्तान मे भी मैंने  आस के अँकुर को पनपने देखा है मान लूँ सब कुछ भुला भी दिया जाय तब भी घावों के निशाँ मिट न पायेंगें अनन्त फैले आकाश मे भी मैंने  ध्रुव तारे को चमकते देखा है

स्नेह की गठरी

कभी खोलना यादों के स्नेह की गठरी  जो तुमने बाँधी मैंने खोली नही स्मृतियों के कुछ निशाँ मिलेंगे  यादों की पतझड़ के मकाँ मिलेगें  कई अनकहे अधूरे क़िस्से मिलेगें नारजगीयों के खोखले ताबूत मिलेंगे  कभी खोलना यादों के स्नेह की गठरी  जो तुमने जतायी नही मैंने कही नही  सौहार्द के भेजते संदेश मिलेगी  ख़ुशियों की बांटती  मिठाई मिलेगी  कई अनकहे सम्मानों की बानगी मिलेगी अधूरी कहानियों की एक कशिश मिलेगी

उदासी

कहाँ से चले थे कहाँ को चल दिये  पराये कब अपने थे अपने भी चल दिये  उम्मीदों के पहाड आलीशान हों जितने भी टूटने के बाद  ताबिर बन ही जाते हैं  बन्द लबों की बात असर करती है ज़्यादा ख़ामोशी अकेलेपन मे  नासूर बन ही जाती है  मुसाफ़िर हैं सब ही  जाना तो सबको है  ख़ाली घरों की उदासी  मन को मार सी जाती है 

सपने लाक्षाग्रह से

कस्तूरी सी ढूँढ मचाकर  तलाश मे फिरता ही रहा  फिर भी सपने लाक्षाग्रह से  आग की भेंट चढ़ ही गये  वो खड़े पहाड भी कहाँ अवरोध विश्वास मे बढ़ता ही रहा  फिर भी सपने उंचे मचान से  एक झटके मे ढह ही गये ख़ौफ़ ये नही कि आगे कौन  कर्तव्य है दौड़ना है मुझे  फिर भी सपने मुठ्ठी की रेत से एक पल मे ही खिसक गये 

विचारों की स्याही

कभी अकेले में बैठना  अन्तर्मन से चुपके पूछना  क्या सब वहम था  या कहीं सासों में धुआँ था यूँही लिखते हुए कभी  क़लम को छोड़कर पूछना  कभी सहमी थी कि नहीं या कहीं विचारों की स्याही शून्य थी कभी किताबों के पन्नों पर  नज़र दौड़ाते समय ये देखना कभी भटकी थी कि नहीं  या कहीं निगाहों में कोई कसक थी  यूँही सरपट दौड़ते राहों में थके क़दमों से ये जरुर पूछना  कभी ठिठके थे कि नहीं या कहीं तेरी प्रगति में बाधा खड़ी थी ..

तेरे अपने

वो खिंचते गये लकीरें तेरे लोग  वो फासले बढ़ाने की कोशिश मे रहे  नजदीकियां पैमाना न थी इस रिश्ते में  जानता तु भी है ये न समझ पाये तेरे लोग वो बनाते गये हर बात का अफ़साना तेरे लोग वो नज़रों को बाँधने की कोशिश मे रहें  सम्मान रहा, तांकना न था इस रिश्ते मे  जानता तु भी है ये न समझ पाये तेरे लोग वो उड़ाते गये ग़ुबार झूठ का तेरे लोग  वो कहकशों के अंबार लगाने आये थे  दूरियाँ ही रखी हमेशा क़रीबी न थी कभी  जानता तु भी है ये न समझ पाये तेरे लोग

तु और मैं

तुझमें और मुझमे बस फ़र्क़ है इतना कभी तुने जताया नही मैंने बताया नही  फासलों मे रहे सदा  कभी तुने पढ़ा नही  मैंने पढ़ाया नही  कोई तो था ज़हर की खेती करता यहाँ  कोई तो था आशंका के बीज बोता यहाँ  यूँ तो अजनबी ही रहे सदा कभी तु पास आया नही मै दूर गया नही  यूँ तो हर आरोप के बाद भी सम्मान रहा  हर अविश्वास के भी विश्वास रहा  यूँ तो दुश्मन बहुत था जहां धोखा तुने भी सिखा नही मैंने  भी किया नही 

वो

वो जो इस कारवाँ मे  शामिल ही नही था कभी  सबसे दूर तक साथ चलता सा लगा  वो जो महफ़िल मे चुप था कभी कुछ बोला ही नही था  बातों की उसका असर सबसे ज़्यादा हुआ जिसने कभी कुछ लिखा नही  लिखा तो चुपके से मिटा गया  ‘मन’ ने सबसे ज़्यादा उसे ही पढ़ा  और जिसे कभी पूजा नही है सीमित ही देखा है जिसको मन से सम्मान सबसे ज़्यादा पा गया