तेरे अपने

वो खिंचते गये लकीरें तेरे लोग 
वो फासले बढ़ाने की कोशिश मे रहे 
नजदीकियां पैमाना न थी इस रिश्ते में 
जानता तु भी है ये न समझ पाये तेरे लोग

वो बनाते गये हर बात का अफ़साना तेरे लोग
वो नज़रों को बाँधने की कोशिश मे रहें 
सम्मान रहा, तांकना न था इस रिश्ते मे 
जानता तु भी है ये न समझ पाये तेरे लोग

वो उड़ाते गये ग़ुबार झूठ का तेरे लोग 
वो कहकशों के अंबार लगाने आये थे 
दूरियाँ ही रखी हमेशा क़रीबी न थी कभी 
जानता तु भी है ये न समझ पाये तेरे लोग


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