Posts

Showing posts from August 22, 2021

सौँप दिया

 कब  सीमाएं बंधती हैं   वो परवाह हो गयी ज्यादा  जा  बैठा तेरे दायरे  वो अपनापन है ज्यादा  कब रिश्तों का भेद रहा अब  कब दूर रहा तू मन से  तुझमे खुद का साथ समर्पण  कब चाहा तुझसे ज्यादा  कब सफर हुए खामोश हैं  वो साथ हो गया ज्यादा  समा लिया अपने में  वो चाहत हैं अब ज्यादा  कब तू आधा था जीवन में  कब पूर्ण मिला है मन को  तुझमे खुद को सौँप दिया है  कब माँगा तुझसे ज्यादा 

मेरा भी हक़ है

 शहर तुम्हारे आवूंगा सौंधी मिट्टी संग लिए  जम जाना तेरी राहों में मेरा भी हक़ है  नदियों संग बह आवूंगा राह मुसलसल एक बने  मिल जाना तेरे सागर से मेरा भी हक़ है  कुञ्ज गली से निकल कहीं चौड़ी सड़को पर दौडूंगा  खुशबू फैलाऊँगा सरसों की मेरा भी हक़ है  धुनि  रचाये देवों को थाल सजाकर पूजूँगा तेरे दरबारी गणेशों पर मेरा भी हक़ है  हर रिश्ते की मर्यादा में साथ समर्पण प्यार रहे  अनजान अधूरे सपने पर मेरा भी हक़ है  मीलों फैले जंगल छोड़े खेत हरे खलिहानों को  दो गज टुकड़ा शहर तुम्हारे मेरा भी हक़ है  शांत रहे आश्वासन मन के दबा रहा स्नेह सदा  तेरे शोर भरे बाजारों  पर मेरा भी है  या तू मुझको शहर बना दे या गांव मेरे बस जाना तू  तेरे साथ की चन्द शामों पर मेरा भी हक़ है 

तेरा भी हक़ है

 एक दिन ले जाऊंगा तुझे गांव अपने  मेरे बचपन की यादों पर तेरा भी हक़ है  पेड़ चढूँगा बच्चों संग तू खेत मुंढेर बढ़ा लेना  मेरे  लहलहाते खेतों पर तेरा भी हक़ है  नदियों झरनों भीगेंगे तू मंदिर दर्शन कर लेना  मेरे आँगन की खुशबू पर तेरा भी हक़ है  कुलदेवी में शीश नवाना ग्राम देवता हो आना  मेरे मानक  देवस्थानों पर तेरा भी हक़ है  चाय की टपरी बैठेंगे तू पनचक्की भी हो आना  मेरे खेतों के अनाजों पर तेरा भी हक़ है  द्वार द्वार पर हाल कहेंगे तू माँ से बातें कर लेना  मेरे घर के बड़े बुजुर्गो पर तेरा भी हक़ है  गोशाला की गायों को हाथ पलाश चले आना  मेरे घर के सारे जीवों पर तेरा भी हक़ है  शिव भोले भंडारी का श्वेत हिमालय देख लेना  मेरे उन खिड़की दरवाजों पर तेरा भी हक़ है  पेड़ रोपना एक कहीं माँ के जंगल हो आना  मेरे काफल रुद्राक्षों पर तेरा भी हक़ है  वो खुले मंच स्कूलों के गुड़ लड्डू भी खा आना  मेरे जीवन की नीवों पर तेरा भी हक़ है।  

सूत्र

 एक बिजूका खेत फसलों  ढूंढे पवन सी साँस को  दर खड़ा है बीच राहों  तु सफर सा साथ दे  एक बांटता सा मेढ़ पत्थर  ढूंढे हिस्सों के जोड़ को  बाँट लें हर काम दोनों  तु मनिहार सा आस दे  एक नीम सा पेड़ कड़वा  ढूंढे दवा की रीत को  जोड़ दे हर सूत्र दोनों  तु ऋषियों सा ज्ञान दे  दो हुए जो साथ दोनों  बाँट लें जो बँट सके  ये समय की धार है  जाने सफर कब छोड़ दे 

सोचता ही रहा

 ये उदासियाँ जो आज की  न जाने ढूंढता है क्या   नज़र गयी जिस दूर तक  एक बाट टोहता रहा  ये खामोशियाँ कहती कहाँ  न जाने यूँ दबा है क्या  बिखरा हुआ है दूर तक  एक आस बांधता  रहा  ये काम है जो रुका कहाँ  न जाने भेद  है ये क्या  संभावनाएं हैं दूर तक  एक लक्ष्य साधता रहा  ये अंकुर है जो दबा कहाँ  न जाने बढ़ रहा है क्या  उम्मीदें बढ़ीं हैं दूर तक  सपना ये एक सजता रहा  ये दिक्कतें रहती कहाँ  न जाने रोकता है क्या  लहराती पवन है दूर तक  और मन तुझे सोचता ही रहा 

तेरा साथ

 विरामों के कहाँ कब बाद  सांसो का सफर होगा  वो ही जीवन गिना हमने  वो तेरा साथ जितना हो  नैपथ्यों के कहाँ कब पार  मंचन ये सफल होगा  वो ही जाना है सच हमने  वो तेरा साथ जितना हो उम्मीदों के कहाँ कब पार  जीवन के ये सफर होगा   वो ही रास्ता है तय करना  वो तेरा साथ जितना हो रिश्तों के कहाँ कब पार  अपनों सा मकां होगा  वो अपनापन जिया हमने  वो तेरा साथ जितना हो समर्पण के कहाँ कब पार  आहों  का मिलन होगा  वो ही खुशबू को जीना है  वो तेरा साथ जितना हो रातों के कहाँ कब पार  बातों का सफर होगा  वो रातें जीयी हमने  वो तेरा साथ जितना हो

विश्वास का पर्याय

 मेरे गमलों में उगी है  आस की एक पौध जो  खेत छूटे जब तलक से  लौटती उम्मीद वो  मेरे सपनो जो दिखा था  वो हक़ीक़त साथ है  एक नदी जो बह गयी थी  आज संगम पास है  मेरे घर कोने जो सिमटी  स्नेह की जो याद है  साथ छूटे जब तलक से  लौटती फरियाद वो  मेरे दरवाजे बजी जो  पीर की आवाज़ है रंग जो फीके पड़े थे  सतरंगी अहसास है  मेरे मन ने जो पुकारा  गुम हुई सी प्यास है  बदरा घिरे हैं जब तलक से  प्रेम की फुब्बार वो  मेरे संग जो अब चला है  विश्वास का पर्याय है  बीज जो बरसों गड़े थे  माँ सा जंगल पास है  एक हकीकत जी रहा हूँ  स्नेह की खेतों का माली  कौन जाने कब तलक है  भाग्य की एक फसल वो  कुछ पास जो आ चुके हैं  पोखरों की मेढ़ पर  तटबंध जो बरसों मढ़ें थे  बाँटते हर प्यास हैं