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Showing posts from March 22, 2020

जो भी हैं

तुने भी कभी चुपके से नीड़ को बनते देखा होगा कभी सहमी सी नज़रों में कुछ ख़्वाब उजड़ते देखा होगा   सपनों की ताबिरों का कोई महल उजड़ते देखा होगा तुमने भी कभी मुझ जैसा  तुझको खोते देखा होगा  हम जो भी हैं हम जो भी थे सम्मानों से साथ रहे  कभी पास रहे कभी दूर लगे कभी मर्यादित से बच निकले  मीलों के उन पत्थरों सा  खड़े रहे यूँ तांकतें रहे  जो चला गया वो लौटा क्या जो ठहरा वो भूला क्या ? 

कोने मे

जब जीवन संघर्ष रहा  फ़सल अधपकी जल गयी  सूनसान किसी कोने में  बीज पड़ा मुस्कुराया है  जब वनाग्नि में सब भष्म हुआ  मन मन्दिर सब आहत हुआ धरती के किसी कोने में कोंपल खड़ी मुस्कुरायी है  जब अन्धेरों ने राह घेर ली  स्याह कालिमा छायी थी  जंगल के किसी कोने में जुगुनु ने राह दिखायी थी  फिर समय ने परीक्षा ली है  फिर अन्वेषण ने पुकार है  कोई रचियता किसी कोने में मन्द मधुर मुस्कुराया है 

वो चेहरा

जहाँ दूर तक नज़र गयीं तु भी उन  चेहरों में था  खामोश रहा है जब भी जीवन  तु बोलते  उन उद्दगारों में था ।। जहाँ सुस्ता गया समय भी  तु भी उन राहों में था  सुनसान रहा ये जीवन जब भी तु निशब्द उन अहसासों में था ।। जहाँ उमंग उत्साह रहा है तु उन पलों का परिचायक था पाया कुछ खोया जब जीवन में तु कहीं किसी कोने में खडा दिखा है ।।

सार

जो मुश्किल था पास हमारे  सब उत्तर तु पाले है  जहाँ सफ़र खामोश हुआ था  चीख़ती कुछ तो यादें हैं  हर रिश्ते का सार बताते  तेरे शब्द सम्भालें हैं जो अचेतन था मन में हमारे  वो मूरत तु ढाले है जब भी रहा वो अशान्त चिन्तन  शान्त किया तेरी यादों ने हर आशा की साँस बँधाता  अपना खोया सावन है  

मैं

बिन रिश्ते और सम्मान से दो कदम साथ चलना चाहता हूँ  जी कर भी हार जाऊँ वो अभिशाप होना चाहता हूँ  सूने पड़े किसी मन्दिर में  टूटा पड़ा वो घंटा होना चाहता हूँ  वन देवता के टूटे महल का  वो खंडित पत्थर होना चाहता हूँ  हिमालय  की तलहटी में खोती  वो कटती पिटती डगरिया होना चाहता हूँ  निशाँ बचे हो जिसके बहने के  वो सूखी नदिया होना चाहता हूँ  स्नेह की आधी अधूरी ही सही  वो अधखुली किताब होना चाहता हूँ  खो गयी हो दुनिया की भीड़ में  उस कुंची की एक चाबी होना चाहता हूँ  हाँ मैं मैं होना चाहता हूँ  मै यूँही तुझमें खोना चाहता हूँ