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Showing posts from December 17, 2023

भूल हुई

 मन रे तुझसे भूल हुई  तूने समर्पण करवाया है  छीना है वक़्त किसी का तो  किसी पर वक़्त गंवाया है  शब्द गढ़े हैं अधूरे से  आधा सा जीवन जीया है  छीनी है ख़ुशी किसी की तो  किसी पर ख़ुशी लुटाई है  राह नहीं चले हैं पूरा  मंजिल दूर अदृश्य रही  हाथ पकड़कर चले हैं किसी का  तो किसी से हाथ छुड़ाया है 

राम गीत

हम राम कहाँ हो सकते हैं हमें राम राह दिखलायेगें  शबरी के झूठे बैरों से स्नेह अन्नत दिखलायेगें  मुश्किल हो जिस जलधारा को अनुनय विनय मनायेंगें  केवट की साद तपस्या को मान चरण धुलवायेंगें  छूपकर पेडों के पीछे से  अमर्यादा बाली  की तोडेगें  गिलहरी ये यत्न प्रयत्नों को इतिहासों में लिखवायेंगे  वो मात पिता के बचनों को जंगल जंगल भी निभायेगें  देकर सीख जीवन की सब वो सरयू में बह जायेगें  हम राम कहाँ बन सकते हैं हमें राम राह दिखलायेंगें