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Showing posts from June 20, 2021

छुवन

 वो निशानियां एक काठ पर  मेरा रोम रोम खिल उठा  जो सुहागिने भी हों ख़फ़ा  मेरा देह देह बस गया  तेरे गात की छुवन लगी  मेरा अंग अंग रंग गया  वो आह साँस दे गयी  मेरा तन बदन महक गया  जो नगीनों सी फ़ांस हों  मेरा मन वहीं अकड़ गया  तेरे बाल की छुवन लगी  मेरा अंग अंग जल गया  वो जो मोह था दबा तेरा  मेरा अंतर्मन भिगो गया  जो फूल सी कपोल हों  मेरा मन वही खिला गया  तेरे लब की एक छुवन लगी मेरा नीर नीड बह गया  वो जो है रहा समर्पण तेरा  मेरा दीन हीन अर्पण रहा  जो एक निस्त - ऐ- नूर है  मेरा मन वही लगा रहा  तेरे स्पर्श का आभास ही  मेरा रोम रोम  बस  गया

साथ चलना

 वो होंगी अधूरी सी बातें भी पूरी  जो तु साथ देगा जहाँ भर में थोड़ा  कदम दर कदम साथ चलना ओ साथी  वो मंजिल नहीं दूर अब कुछ ओ साथी  उन सांसों का इतिहास जीवन लिखेगा  ये रिश्तों की आधी अधूरी कहानी  वो होंगी अधूरी कहानी भी पूरी  जो तु भी लिखेगा वो दो पृष्ठ थोड़ा  वचन दो  वचन साथ देना ओ साथी वो मौसम नहीं दूर अब कुछ ओ साथी  उन त्यागों का समर्पण जीवन लिखेगा  ये एकाकी मानों की अधूरी रवानी  वो होंगी अधूरी रवानी भी पूरी  जो तु साथ होगा इस ढलती जवानी  यूँ ही सदा मिलते रहना  ओ साथी वो संगम नहीं दूर अब कुछ ओ साथी  इन मन का अंकुर सज  कर रहेगा  ये माली भले छोड़ दे सब निशानी 

वो सब जानते हैं

 जो चुप थे कभी कह न पाए किसी से  वो  सब जानते हैं ये स्नेह मेरा  कदम दर कदम साथ चलना था जिसके  वो सब मानते थे ये स्नेह मेरा  जो उठाते रहे फ़र्ज़ अपनों का बढ़कर  वो सब जानकर था ये परित्याग मेरा  वो नज़रें शिकायत कर न सकी जो  वो सब मानकर था ये परित्याग मेरा  जो दिल से मिला और खोकर गया सब  वो सब जानता था ये स्नेह मेरा  जो बाँहों में घुलमिल गया था कही पर  वो सब मानते था ये स्नेह मेरा  जो बढ़ाते गए  दूरियों को  निरंतर  वो सब जानकर था ये परित्याग मेरा  वो जो मुझसे कहीं दूर जा न सके जो  वो सब मानकर था ये परित्याग मेरा  जो सांसो को सांसों में रहकर गया सब  वो सब जानता था ये स्नेह मेरा जो देहों में रचबस गया है कही पर  वो सब जानता था ये स्नेह मेरा

डर

 निशब्द रहे जो बरसों में वो डर था एक इस मन का  कब रोका था तुझको वो जो डर था इस मन का  जाते तुझको देखा था  खोया था हर सपना  पास नहीं था जब तु वो डर था इस मन का    दूरियां बढ़ती गयी जो वो डर था एक इस मन का  जब जुबान खुली थी  वो डर था एक इस मन का तोड़ी थे जो बंधन  लाँघ गया था सीमा आंसू  जब निकले थे वो डर था इस मन का मिलन न होगा अब फिर ये डर था इस मन का  रूठ गया था जो तु वो  डर था एक इस मन का पास जो आये हम तुम गले लगाया तुमने  खो ना दूँ तुझको फिर से वो डर था इस मन का क्या पूछेगा अब वो ये डर था इस मन का  समझेगा अपनेपन को ये डर था इस मन का बढ़कर हद से आगे आगोश में लिया जो सच को  बुरा ना लगे तुझको वो डर था इस मन का  साथ चलेगा क्या तु ये डर था इस मन का  अब डर नहीं लगता मुझको जो सरहद पार किये हमने  ये डर वो डर सब डर थे बस कहने की लाचारी थी  तु साथ ना देगा अब ये डर भी नहीं लगता इस मन को तुझको खो जाने का डर था इस मन को  तुझमे खो जाने का डर कहाँ इस मन को 

घुलता जाएं तु

 हमको तुमको एक मिलाती संगम सी दो सरिता आ पावन गंगा बन जाएं भगीरथ हो अलकनंदा  सांसों के गहराते स्वर में यादों की  निशानियां मुझमें घुलता जाएं तु जीवन की यही कहानियां  सीमाओं का इल्म नही खुशबू की ये पहचान रही  आ घुलमिल परमल बन जाएं फूलों और पत्तों की  शब्द नहीं जब कह पाएं महसूस हो सारी बातें  मुझमें घुलता जाएं तु जीवन की यही शरारतें माँ का आँचल तेरी गोदी धरती का बिछोना हो  सुख दुःख सारे बाँट भी लें हम एक दूजे की ताकत हो  मै तेरा स्वभाव चुरा लूँ और  तु मेरी बदमाशियां  मुझमें घुलता जाएं तु जीवन की यही अभिलाषा