Posts

Showing posts from November 5, 2023

दिवाली

ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी याद लायी तु मगर अपनों को नही लायी हर उजाला दीप है बस मनों सन्ताप है कब सजेगी थाल पूजा कब घरों में रोशनी सबके नामों के दीप बस जलते रहे बुझते रहे याद बस मनती रही उत्सव तो खाली रहे हर घरों के द्वार पर एक इन्तजार सा रहा कब आयेगी आहट तेरी कब सफर की मंजिलें घर रहा खाली सदा यूँ सफाई ही रही खुशी तो है बहुत पर कुछ कमी सी रही हर मनों में ख्वाब है उस किरण की आस है कब जायेगा वनवास ये कब सजेगी देहरी ऐ दीवाली तु अबके भी नही आयी

मन तुझ तक

शाम थकी सी लगती है तुझ बिन सुनी लगती है सूरज राहें तकता है ये मन तुझ तक जाता है  चाय अधूरी ठ़डी है कागज कुछ अलसाये हैं  सोच वहीं पसर जाती है ये मन तुझ तक जाता है बच्चों की किताबें हैं  चलचित्र सा जीवन है वक्त वहीं पर ठहर जाता है ये मन तुझ तक जाता है अधूरे से कुछ सपने हैं कम्बल बाँह पसारे हैं आँख वहीं पर लग जाती है ये मन तुझ तक जाता है रात कहीं घनघोर हुई है दो पहर कहीं पर बीत गये है जब बेबस सपने होते हैं  ये मन तुझ तक जाता है

तुमसे

तुमसे मेरे मन की शक्ति   तुमसे मन विश्वास भरा है तुम ही मेरे साथ चले हो  तुम ही मेरे राह की मंजिल तुमसे शंका तुमसे चिन्ता तुमसे गुस्सा प्यार तुम्ही से तुमसे दिन हैं तुमसे रातें  तुमसे सूरज चाँद तुम्ही से तेरे मेरे बीच ना कोई तेरे मेरे साथ ना कोई हम दोनो की राह एक है मंजिल एक सफर एक है आ आलिंगन कर जाते हैं गिला शिकवा भूल जाते हैं तु चूमे माथा लब में छू लूँ चल फिर दोनो घुल जाते हैं

अंश अंश

अहसास किया है मैंने बरखा की बूँदों का रोआँ रोआँ सा देखा है काया के ठहराव का पँखुडियों को छूआ है मन को टटोला है रोम रोम अपना पाया तेरा समर्पण देखा है गुदगुद सी परतों का मैनें रंग बदलते देखा है रूखी साख पर मैंने कोंपल खिलते देखा है निशां दिये हैं कई गर्भित अहसासो पर अंश अंश अपना पाया तेरा स्नेह पाया है