सपने लाक्षाग्रह से

कस्तूरी सी ढूँढ मचाकर 
तलाश मे फिरता ही रहा 
फिर भी सपने लाक्षाग्रह से 
आग की भेंट चढ़ ही गये 

वो खड़े पहाड भी कहाँ अवरोध
विश्वास मे बढ़ता ही रहा 
फिर भी सपने उंचे मचान से 
एक झटके मे ढह ही गये

ख़ौफ़ ये नही कि आगे कौन 
कर्तव्य है दौड़ना है मुझे 
फिर भी सपने मुठ्ठी की रेत से
एक पल मे ही खिसक गये 

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