जीवन है तू

 मैं रहा जीवन रहा और बात सब आधी रही 

एक अँधेरा जीतना है साथ तू दे दे  जरा 

सब हार कर जो है मेरा मैं जीत सकता हूँ नहीं 

अभिशप्त जीवन है मेरा तू साथ चल दो पल सही 


मैं उजाला जीतकर अपनों को खो सकता नहीं 

दीप के आशय रहा हूँ साथ तू दे दे  जरा 

अब मशालें बालकर ये अँधेरा मिट सकता नहीं 

अपरिपूर्ण जीवन है मेरा तू दीप सा जल तो सही 


मैं शहर मै गांव था पर  अधजली बस्ती रहा 

एकरसता राह मेरी साथ तू चल तो जरा 

घर के कोने मौन को मैं दूर कर सकता नहीं 

त्याग जीवन है मेरा तू कर भरोसा तो सही


कोप का हल ये नहीं कि बात न करना मुझे 

सह न पाया विक्षोव कोई बात तू कह तो जरा 

मन के साये धूप को मैं कब अँधेरा कर गया 

इस घर में है सम्मान तेरा देख जाना तू कभी 


कह रही है आस मेरी पूछते अरमान हैं 

कब तलक होती रहेगी ये परख अप्रतीति की ?

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण