बनता है

 नदी किनारे गांव बसा हो बहता बचपन तो बनता है 

ख़ाली खेत सबेरे हों तो चिड़ियों का कलरव बनता है 


साफ़ चाँदनी रात रहे तो तारों को गिनना बनता है 

जुगुनू मन के द्वार खड़ा हों टिम-टिम गिनना तो बनता है 


अखरोट कहीं जब सुख गए हों पत्थर उठाना तो बनता है 

आसमां कभी जब चुनौती दे तो आँख उठाना तो बनता है 


छूटे हाथ मिले हों जब फिर से गले लगाना तो बनता है 

सावन आये तो  पेड़ो पर  झूला झूना तो बनता है 


तानें हों लाखों नजरों के एक शरारत तो बनती है 

इश्क़ तुम्हारा हों जग जाहिर फिर भी छुपाना तो बनता है 


थोड़ा नटखट होना तो बनता है जीवन जीना तो बनता है 

लौट भी लें  बचपन में थोड़ा खुद को जीना तो बनता है 

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