मिलन हुआ है

 

आज गले मिल रो देंगी जब 

संगम पर पहुँची हैं नदियां 

अनवरत बहे जो युगों युगों तक 

मन से मन का मिलन हुआ है 


बूँद बूँद तरसता था बादल

इस पपीहे की प्यास बुझी है

उमड़ घुमड़ का बरस गए जो 

बीज ख़ुशी के खिल आये हैं 


क्षण भर में सब टूट गया जो 

भंवर रहा उलझी बातों का 

एक बार बस कदम बढ़ाए

हर दूरी हल हो जाती है 


आलिंगन अब मन का होगा 

देह कहीं अमरत्व पा गयी 

एक बार सब धुंध हटे तो

लब सब कुछ कह जाये हैं

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण