ताज वो मेरा

 जो दबे रहे भावों में मेरे निखरा देखा है उनको

चुप-चुप लिखते थे जिनपर पढ़ते देखा है उनको 

डरा सहमा रहता था जो कहते देखा है उनको 

बस दूरी में जो  रहता था पास आ रहा अब है।। 


जो थे खुले समुन्दर अपने सिमटा देखा है उनको 

तब भी वैसा ही दिखता था ताज वो मेरा अब है

बंद करूँ दरवाजे सब तो पास खड़ा वो अब है 

मन ही मन मै वो रहता था साथ चला जो अब है।। 


हर रिश्तों से अलग रहे पाना क्या खोना उनको

मन में बास रहा जिनका क्या गले लगाना उनको  

गहन अँधेरा था जब भी वो बीज पड़े थे मन मे

खुशियों की फसलें लहराई महक बिखेरे अब है।।  

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