तु हारा तो मैं हारूंगा

 

बाँट लेना वेदना सब संताप मन रखना नहीं 

सामना करना है जग से फिर कभी मुड़ना नहीं 

तु नदी है तोड़ लेगी  राह की मुश्किल सभी 

याद हो एक साथ तेरे ढाल है पहाड़ की 


छाँट लेना अरण्य सब अकुलाना जरा नहीं

भेद देना जग ये सारा फिर कभी रुकना नहीं 

धार है तु काट लेगी निष्ठुर कोई बूटा सही 

याद हो एक साथ तेरे पाषाण है पहाड़ की 


नाद हो विकराल तब भी त्रास मन रखना नहीं 

किकना सब जोर से तब फिर कभी झुकना नहीं 

उद्धघोष है गांडीव का तु रणबांकुरे तुझसा नहीं 

याद हो एक साथ तेरे आवाज लौटी पहाड़ की 


तु हारा तो मैं हारूंगा शल्य सा अधिरथ मैं  नहीं 

अलिखित रहें जयकाव्य मेरे पर तु कभी डरना नहीं 

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण