वो किरण

वक़्त तो मिजाजी था
कब किसका हुआ 
कल तेरे साथ था 
अब पराया हो गया 

बदलता पन्ना कब रहा
कहानी के कथानक में
पहले चित्र उभरता था
अब परछाईं रह गया 

यादें कब किसकी हुई
जीवन की दौड़भाग में 
पहले हरदम मुँह में था 
अब मन में अकेला रह गया 

तु भी मेरे पहाड़ों सा है
मन मे है पर दूर ही रहा
हिमालय की वो  किरण
जहाँ रोशन तो कर गयी 


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