घात

पाले की परतो को देखा झील को ढकते 
खोते हुऐ देखा है प्रतिछाया को 
पतझड़ मै याद आया कि
साथ अपने भी छोड़ते है 
यकीं तो न था पर तेरे आने के बाद लगा
कि घात अपने ही देते है 

धरती को चीरते हुए 
उम्मीदों के बीज बोये थे हमने 
बुग्यालों कि खाख छानते हुए देखा है मृग को 
कौन अपना होता है जहाँ मै ढूँढ़ते  रहे 
तुझसे मिलकर पाया कि 
मन के करीब का ही कोई मन पर चोट करता है 

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