उम्मीद बाँधा हूँ

 जहाँ परवाह नहीं कुछ भी 

वहीं उम्मीद बाँधा हूँ 

मैं बचपन लौट आया हूँ 

वो पत्थर मन छुपा आया 


कभी झरने नहाया हूँ 

कभी नहरों में बह आया 

मैं बचपन की शरारत सब 

उसी से जोड़  आया हूँ 


कभी रातों को रोया हूँ 

कभी चुपचाप खोया हूँ 

मैं बचपन की सभी तस्वीर 

उसी से जोड़ आया हूँ 


कभी पहाड़ों चढ़ा ऊंचे

कभी गिरकरके लुढ़का हूँ 

मैं बचपन की सभी कोशिश 

उसी से जोड़ आया हूँ 


समुन्दर एक चाहत है 

नदियों सा घुला उसमे

मैं बचपन की सभी मंजिल  

उसी से जोड़ आया हूँ 


छोटी सी रही पहचान 

रंगमंचों की कदर किसको 

मैं बचपन के सभी प्रभुत्व 

उसी से जोड़ आया हूँ 


तेरा हक़ है सदां तेरी 

आधारों की शिला तुझसे 

मैं बचपन के सभी सपने 

तुझी से जोड़ आया हूँ 


 जहाँ परवाह नहीं कुछ भी 

वहीं उम्मीद बाँधा हूँ 



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