अस्पष्ट रहे

 कभी चला हूँ राह अनचली

कभी राह बनायीं है 

वो कहते अस्पष्ट रहे हम 

जिनकी धुन में जागे हैं  


कभी विचारों शून्य हुआ हूँ 

कभी बात बतलायी है 

वो कहते अस्थिर से रहे हम 

जिनकी राहें खामोश चले 


कभी बना पाषाण रहा हूँ 

कभी प्रस्फुटित कोपल हैं 

वो कहते अपाठ्य रहे हम 

जिनको बरसों लिखते रहे 


कभी लगा है सब पाया है 

कभी वजूद मिटाता जीवन है 

वो कहते बस गूढ़ रहे हम 

जिनको सदियों गाया है 


सच का एक रिश्ता है जिनसे 

आत्ममनन की यादें हैं

वो कहते यूँ साथ में हैं हम 

बस तुम हमसे थोड़ा दूर रहो 


दूर कहाँ अब जाया जाता 

या सांसे विराम लगे 

वो कहते सम्भाषण हैं ये 

मैं कहता जीवन सार प्रिये !!

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