नैपथ्य

इसी किसी नैपथ्य के पीछे
कुछ आवाजें आयी होंगी 
बरबर मुड जाती हैं नजरें 
कुछ हिलोर मन जाती होगी

यादों की बस्ती में विचरित
कुछ कविताऐं गायी होंगी
झुकी रही जो पलकें अक्सर
कभी  नजर मिलायी होगी

इसी किसी मंजर की बातें
मन ने मन से की तो होंगी
पूछे होंगें सवाल अधूरे
कभी तो उत्तर ढूँढे होंगे

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