बाबा (पिताजी)

 साधारण जीवन की असाधारण सोच थे बाबा (पिताजी) 

मेरे हिस्से का हिमालय ढह गया जो अब कभी नहीं चमकेंगे पर उनके  जीवन से सीखी कुछ सीखें जीवन को कुछ मायने जरूर देंगी।  वो केवल पिता नहीं वो संस्थान थे  एक आदर्श सोच की। जिन्होंने सिखाया की जीवन कितना भी साधारण हो असाधारण कार्य किये जा सकते हैं।  जिन्होंने सीखाया सदैव पैसे होने, न होने से आप आम जन मानस की सेवा और सहयोग कर या नहीं कर सकते बस इसके लिए सबको अपना सा समझना होगा,   जिन्होंने सीखाया  त्याग ही जीवन का असली मतलब है, जिन्होंने सीखाया  शांति ही सबसे बढ़ा संतोष है और जिन्होंने सीखाया  की ज्ञान ही सबसे बढ़ा धन है ।  

सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, लेखन और पारिवारिक जीवन में सामजस्य बिठाने की कला के नायब उदाहरण थे पिताजी। वो जीवन के अनेक क्षेत्रो में नए मानक स्थापित करते गए पर परिवार हमेशा से उनकी प्राथमिकता रही। हम सब को अपने त्याग और परिश्रम से जितना उनके बस था उससे ज्यादा दिया ।   

ये दुःख हमेशा रहेगा कि एक पुत्र के रूप में,  मैं उनके लिए कभी भी कुछ भी नहीं कर पाया । ये पीड़ मेरे हिस्से की है जो मुझे जीनी है । ये दुःख भी जीवन भर रहेगा क़ि बचपन से लेकर अपनी आखिरी सांसो तक न उन्होंने मुझे  कभी डांटा , न गुस्सा किया , न कभी पिटाई की। यूँ तो पिछले कई  सालो अगर उनसे दूर रहे पर  हर शाम उनसे फ़ोन पर बात हुई और तब अक्सर वो कहते थे जीवन में हर बात के लिए नियम होना जरूरी है।  जब भी सामने रहे हमेशा कहते थे समय के पाबंद बनो, समय पर उठना, सोना, खाना जरूरी है।  आखिरी दिन भी जब उनसे बात हुई तो यही कहा कि "मुझे कुछ नहीं होगा जब तक तु घर नहीं आया, लेकिन अब घर आकर सामाजिक और मानवीय उत्थान के लिए जरूर कुछ काम करना।" 

उन जैसा पिता मैं कभी बन नहीं पाऊंगा। खुद धोती - कुर्ता पहने रहे हमें सूट सिलवाते रहे, खुद के लिए सबसे सस्ता कपडा ख़रीदा हमारे लिए सबसे अच्छा, खुद हमेशा बचत और संयम में रहे और हमें हमेशा स्वछंद जीना सिखाया । आजतक मुझे अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं उठाने दी और हमारी सब जिम्मेदारियां खुद ही उठाते रहे।  

मैंने कभी जीवन में कोई  भगवान कभी सही से नहीं पूजे क्योंकि मेरे लिए मेरे भगवान आप ही हैं। जो जीवन आपने मुझे दिया उसका अंश मात्र भी अगर कभी कर पाया तो ये जीवन धन्य होगा।  

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