ये शामियाना

तुझसे शुरु हुई कुछ लघु कथायें 
जीवन मे एक नया आयाम दे गयी 
साथ कौन था तुझमें मुझमे ये ज़रूरी नही 
ये कुछ बिसरी कहानियों को पूरा कर गयी

वो लगाव , शान्ति और फिर तेरा अपनापन
टूटने बिखरने का डर और वो बेरुख़ी 
हम सब की आशियानों तक की तलाश 
कुछ घरौन्दों को एक रुप दे गयी 

अखरता है कुछ तो हर पल मन में 
यूँ यादें घूम आती है तेरे लब्जो के पार
इत्तफ़ाक़ ही था वो ढलती शाम का जुगुनु
जानता था अजनबी! ...फिर भी मन मे घर कर गया

तेरा मुझे जानना और मेरा तुझे समझना 
तेरे आत्मसम्मान और मेरे भरोसे को चटक गया 
शामियानों मे किसी विश्वास की नींव 
न गहरी हुई है न सुदृढ़ ही अजनबी!!! 






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