कुछ सफर सुहाने

 रास्ते कहाँ सब मंजिल तक ले जाते हैं 
कुछ सफर सुहाने होते हैं अफ़साने बन जाते हैं 

तलाशता जीवन भर घूमता कस्तूरी सा 
जंगल मोह लगा आया खुद को न पहचान सका 
कुछ सपन सजोये ऐसे हैं 
जो जानता अधूरे हैं 

मृगतृष्णा रेगिस्तां की दौड़ दौड़ सम जाना है
शहरों शहरों भटका हूँ खुद को न मैं ढूढ़ सका 
कुछ गलियारे ऐसे हैं 
जिनमे धसते जाना है 

सूखती नदी सा समंदर कबसे दूर रहा 
ताजगी हिमालय संग समेटे रहता हूँ 
कुछ विश्वास हैं ऐसे  
जिनके संग ही बहाना है 

रास्ते कहाँ सब मंजिल तक ले जाते हैं 
कुछ सफर सुहाने होते हैं अफ़साने बन जाते हैं 

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