दूर एक छोर

कोई उम्मीद नहीं सिवाय इसके 

तेरे मन में रहूँ अजनबी बन सदा 

कभी मुड़कर जो देखना पड़े तुझे 

उन ख्यालों का एक चेहरा हूँ मैं सदा 


विश्वास सुदृढ़ सा हो जाता है तब 

जब वो कहता है उम्मीदें मत बांधना 

खींचता है एक धुर्व मनों के  वो भी 

साथ हों मिल पाएं ये जरूरी कब था 


वर्षों की  सीमा तय हैं मन में 

कुछ फर्ज निभाने तुमने हमने 

उम्मीदों की अजनबी साख पर 

देर दूर एक छोर उजाला आएगा 

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण