समर के बीच में

 मैं समर के बीच में भी प्यार का एक गीत लिखूंगा 

आज की हर एक कहानी मैं प्रणय के साथ लिखूंगा 

तू ही है मन का मुसाफिर आस का एक दीप है 

जो कभी जलता लगा बुझता लगा मेरी प्रीत है 


मैं संदेह के घेरों में भी एक प्रेम की पाती लिखूंगा 

हार हो या जीत हो पर मैं समय के साथ लिखूंगा 

तू ही है मन का हिमालय आखिरी मंजिल सी है 

जो कभी पाता लगा कभी खो गया मेरी प्रीत है 


मैं सभी रिश्तों से हटकर प्रेम का किस्सा लिखूंगा 

कर्त्तव्य पथ को पार कर मैं एक नया सृजन लिखूंगा 

तू ही मन का चैन सा अब आखिरी सी सांस है 

जो कभी अपना लगा कभी हो पराया प्रीत है 

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