टूटते तारे भी हैं

टूटते तो तारे भी हैं 
दूसरो की मन्नतों के लिए
टूटते तो पहाड भी हैं
सही ढाल पाने के लिए 

झुकते तो पेड़ भी है
दूसरों के अन्न के लिए 
तोडे तो फूल भी जाते हैं
भगवान पर चढ़ाने के लिए 

गरजते तो बादल भी हैं
मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू के लिए 
गुस्सा तो माँ भी होती है 
रूठों को मनाने के लिए 

यूंही बिखरने से डरा नही 
ना सहमा हूँ गुस्सा या झुकने में 
हताश टूटा हूँ जब तो बस 
अपनो को खोने के बाद 

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