छाप छोड़कर

वो डूबते सूरज का दिन
वो उफान मे डूबती नाव की शाम
वो मकां कभी भुलाये नही
जो खण्डहरों मे तब्दील हुए 
वो मनरंग कभी धोये नही 
जो छाप छोड़कर चले गये

वो घर के कोने मे तेरी ख़ुशबू 
वो आशीषों वाली खुशी की शाम
वो महल जो कभी सजे नही 
वो किले जो कभी उजड़े नही 
बिखरे क़दम कभी मिले नही 
जो छाप छोड़कर चले गये

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